अंतिम - दर्शन | Antim - Darshan

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Antim - Darshan by श्री मनमोहन गुप्त - Shri Manamohan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्तिम दशन मिनटों में किसन की हथकड़ी खुल गई । किसन-सर्बके कन्घे पर चदा दिया गया । फिर किसन को टोकर गॉवचाले सुवन चाचा के चघूतरे पर लाकर रक्खे । उधर दारोगा, सिपाही, व्दौकीदार सब खिसक पड़े । कल । कलं भी नही, शाज सबेरे भी जो किसन एक बूंद पानी के लिये तरस रहा था अभो उसके दॉतो में दॉत लग जाने के बावजूद लोग लोटा भर भर पानी उसके मुँह मे डात्तने लगे । दातो के दरार से शायद एक आध बू द अन्दर भी गयी होगी। किसन ने मुँह फाड़ दिया । लोग कहते हैं कि पानी का कोई स्वाद नहीं है, रिन्तु उस समय किसन का मुह फाइ़ना देखकर कोई भी इसे माने वगेर नहीं रद सकता । किसन ने खूब पेट भरकर पानी पिया । उसकी 'झाँखे खुल गईं । उसने देखा कि वह किसी मकान के चवते पर पड़ा है; बहुत से लोग इसे चेरकर खड़े हें। यद्यपि सभी होशियार थे कि कही पगला उठकर मारना या काटना शुरू न करे । इतने में किसन ने कदा--^मेरो अस्मा को? ? सब लोग पीछे इटे । किसन ने कहा--“भाई मैं पागल नहीं हूँ । मैंन कल अपनी साॉकोदेखाहे।वह कूए पर राई थी। उससे कह दो कि तेरा किसन सजा काट कर आ गया” 1. ...ागे कुछ कहते न कहते किसन के मुह से बलवला कर खून निकला | पास हो पीछे सुचन चाचा बेठे तम्बाकू पी रहें थे । 'किसन' कान में जाते दी चहं हुक्का फेक कर भाग करके किसन के पास आये । जोर से घोषणा करने के रूप में बोल उठे 'किसना ! किसना आया! अरे भेरा क्रिंसन आयाः! कहते दी क्ते वह्‌ किसन




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