प्राचीन भारतीय मिट्टी के बर्तन | Prachin Bhartiya Mitti Ke Bartan

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Prachin Bhartiya Mitti Ke Bartan by डॉ. राय गोविन्दचंद - Dr. Rai Govind Chand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च प्रस्तर युग के भारतीय मिट्टी के बर्तन यह जानने की किस को इच्छा न होगी कि हमारे पूवज किस प्रकार के बर्तन सें अपना धघान्य एकत्रित करते थे; किन में वे भोजन बनाते थे; किन में वे भोजन करते थे तथा किन में वे पेय द्रव्य पीते थे । घातु के बने विषिध बरतनों के अतिरिक्त हमें प्राचीन स्थानों की खोदाई में विविध भाँति के मिट्टी के बरतन प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए हैं । इनमें हण्डियाँ, कसोरा, परई, कुण्डे, तश्तरी, भिक्षापात्र इत्यादि अनेक बरतन हैँ जो नित्य प्रति साधारण जनता के व्यवहार में आते थे । ये सब एक ही आकार-प्रकार के नहीं हैं। मिन्न स्तरों से प्राप्त हुए ये मिट्टी के बरतनों के टुकड़े अलग- अलग काल के अलग-अलग ढंग के हैं । किसी-पर-किसी श्रकार की चित्रकारी है तो किसी-पर-किसी प्रकार की । किसी की ग्रीवा पतली हैः तो किसी की फैली हुई इत्यादि-इत्यादि । इनके बनाने मे, इनकी मिट्टी मांडने में; सुखाने में, पकाने में; आकार-प्रकार में; रंगाई तथा चित्रकारी इत्यादि में जो उत्तरोत्तर विकास तथा परिवितेन दृष्टिगोचर होते ह जिनमें मनुष्य के जीवन का इतिहास छिपा हुआ हे क्योंकि मनुष्य बहुत प्राचीन काल से सिट्टी के बरतनों का व्यवहार करता आ रहा है और अब भी भारत में तो करता ही है । साधारण जन्स्ता तो इसी को अपने काममे आजमी लातीदहै। ऐसे महापुरुषों की संख्या अभी कम है जो चीनी के बरतनों मे भोजन करते हैं । यही कारण है कि आज के इतिहासज्ञ अपनी सामग्री के अध्ययन में इन मिट्टी के टुकड़ों को विशेष महत्व प्रदान कर रहे हैं ओर यहीं कारण है कि हमारे संग्रह्ालयों में इनको एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ है । आज इनके आधार पर प्रत्येक-काल के मनुष्य-जीवन की परिस्थितियों का पता लगाया जा रहा हे। आज नो अध्ययन मनुष्य के जीवन के विकास का हो रहा है उससे ऐसा पता लगता है कि प्राथमिक युग में मनुष्य को किसी प्रकार के बरतनों की आवश्यकता न थी । वह तो अपना जीवन कच्चा मांस तथा के फल न)




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