विश्व - इतिहास की झलक भाग - 2 | Vishv Itihas Ki Jhalak Bhag - 2

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Book Image : विश्व - इतिहास की झलक भाग - 2  - Vishv Itihas Ki Jhalak Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: १३४९; समाजवाद का आगमन १२ फ़रवरी, १९३३ मे तुम्हें लोकसत्ता की प्रगति के बारे में लिख चुका हूं; मगर, याद रखना, इस प्रगति के लिए खूब लड़ना पडा था । किसी प्रचलित व्यवस्था में जिन लोगों का स्वाथ॑ होता है, वे तब्दीली नहीं चाहते और कोई तब्दीली होती है तो उसे सारा जोर लगाकर रोकने कौ कोशिश करते है । फिर भी ऐसी तब्दीलियों के बिना कोई सुधार या तरक्क़ो नहीं हो सकतो । किसी भी संस्था या द्ञासन-प्रणाली को उससे अच्छी के लिए जगह खाली करनी पड़ती है । जो लोग यह तरक्की चाहते हैं, उन्हें पुरानी संस्था या पुराने रिवाज पर हमला करना ही पड़ता है । इस तरह उन्हें सदा मौजूदा हालत की मुखालफ़त करनी और जो. लोग उस हालत से फ़ायदा उठाते है उनके साथ जद्दोजहद करना लाजिमो होजाता है । पद्चिमी योरप में शासकवर्ग ने हर तरह कौ तरक्क्रो को क्रदम-क्रदम पर मुल्रालफ़त की। इंग्लेण्ड में उन्होंने तब हथियार डाले जब देख लिया कि एसा न करने से हिसात्मक क्रांति होने की सम्भा- बना है । जसा में पहले बता चुका हूं, उनके लिए आगे बढ़ने का दूसरा कारण नये व्यवसायी लोगों का यह खयाल था कि थोडी-सी लोकसत्ता तिजारत के लिए फ़ायदेसन्द है । मगर में तुम्हें फिर याद दिलाता हूं कि उन्नीसवीं सदी के पहले आधे हिस्से मे ये लोकसत्तात्मक विचार पठृ-लिखे लोगों तक ही महदूद थे । मामूली आदमियों पर उद्योगवाद कौ तरक्क्री का जबरदस्त असर हुआ था ओर वे जमीन छोड-छोड- कर कारखानो मं जाने लगे थे। कारखानों के मजदूरों का वग॑ बढ़ रहा था । आम तौर पर कोयले की खानों के पासवाले शहरों मे बे भटे ओर गन्दे मकानों भे भेड- बकरियों की तरह भरे रहते थे। इन मल्ञदूरो के सयालात जल्दौ-जल्दौ बदल रहे थे ओर उनके अन्दर एक नई मनोवत्ति का विकास हो रहा था । जो किसान ओर कारीगर भूख के मारे कारखानों में आ-आकर भरती हुए थे उनसे ये मजदूर बिल- कुल जुदा थे । जैसे इन कारख्रानों के खोलने में इंग्लेण्ड सबसे आगे बढ़ा हुआ था, वैसे ही कारखानों के मजदूरों का वग॑ भी पहलेपहल इंग्लेंण्ड में पेदा हुआ और बढ़ा । कारखानों के भीतर की हालत ख्रौफ़नाक थी और मजदूरों के घर या झोंपडे और भी बुरी हालत में थे । उन्हें तकलीफ़ भी बहुत थी । छोटे-छोटे बच्चों ओर औरतों को इतनी देर तक काम करना पड़ता था कि आज उस बात पर यक्रीन नहीं होता ।




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