देवनागरी लिपि स्वरूप विकास और समस्याएँ | Devnagari Lipi Svaroop Vikas Aur Samasyaen

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Devnagari Lipi Svaroop Vikas Aur Samasyaen  by नन्ददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ऐ वर्तमान विचारकों और विद्वानों में विशेष रूप से महामहिम डॉ. * राजेंद्रप्रसाद, राष्ट्पति डॉ. राधाकृष्णन, आाचायें विनोबा भावे, श्री. न. वि. गाडगील, स्वातंत्यवीर वि. दा. सावरकर, धरी. काकासाहैब कालेक्षकर आदि के प्रति हम आभारी है, जिनके बहुमूल्य विचारों से इस पुस्तकं को प्राण- प्रतिष्ठा हुई है । इसके अतिरिक्त डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. रघुवीर, श्री. के. का. शास्त्री, पद्मभूषण डां. रा. ना. दडिकर, ड. ए. एम्‌. षाटगे, डं. ना. गो. कलिलकर, डं. भोलनाथ तिवारी, डा. कृष्णदत्त बाजपेयी डॉ. रा. प्र. पारनेकर, आचायं विश्वनाथप्रसाद मिश्र, श्री. जेठालाल जोशी, डॉ. भगीरथ मिश्र, डॉ. चन्द्रभान रावत, डॉ. म. च्यं. सहस्रबुध्द्धे, श्री. मो. क. सत्यनारायण, श्रीमती अबु जम्माल, प० हूषिकेश कर्मा, श्री सुरेशचन्द्र त्रिवेदी, श्रं। दशरथ चे. आसनानी, श्री राजनारायण मौयं, श्रो. शं. रा. दति आदि क हम विशेष कृतज्ञ हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओों मे प्रस्तुत पृष्तक कौ वहुमू्य बनाया दै । मजर एन. बी. गदर के “चीनी लिपि का देवनागरी में रूपान्तरण” लेख का हिन्दी में अनुवाद केर डां. म. सी. करमग्कर हिन्द्र विश्वविद्यालय वाराणसी ने हमें उपकत किया है, जिनके हम बड़े आभारी हैं । साथ ही हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन प्रयाग के अधिकारियों के प्रति हम विशेष कुृतज्ञ हैं, जिन्होंने “वर्तमान अक्षरों की उत्पत्ति और देवनागरी लिपि” नामक स्व. रायबहादुर गौरी कंकर हीराचन्द ओझा और स्वर्गीय पं० केशवप्रसाद मिश्र के लेखों को प्रकाशित करने की स्वीकृत प्रदान की । इसके अतिरिक्त नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, केसरी संस्था एवं महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुना, भारतीय हिन्दी परिषद्‌, राष्ट्भाषा प्रचार समिरिं वर्धा आदि संस्थाओं के भी हम अत्यन्त ऋणी है, जिनका प्तामयिक सहयोग इस ग्रंथ के लिए उपादेय सिद्ध हुआ है। इस ग्रंथ के गुणों का श्रेय विद्वान्‌ लेखकों को ही है। यदि इसमें कोई त्रुटियाँ रह गयी हैं तो हमारी हैं। हम अपने सुधी पाठकों से उनके लिए क्षमा-याचना करते हैं । श्रद्धय




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