पेंगुइन की कहानी | Penguin Ki Kahaani

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Penguin Ki Kahaani by दिनेश पालीवाल - Dinesh Paliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ पेंगुइन जब जमीन पर बैठी होती है, तो दूर से लगता है, कोई कंबल औओडढ़े आदमी खड़ा है। इस तरह इनका बैठा होना दूसरे जानवरों के लिए काफी डरावना होता है। 9. चिड़ियों की पूंछें देखी होंगी । असली पूछ बहुत छोटी होती है। लेकिन उस पूंछ के पर काफी बड़े होते हैं । उड़ते समय इन चिड़ियों के पूंछों के ये बड़े पर जापानी पंखे की तरह फैल जाते हैं, जिससे इन चिड़ियों को आकाश में उड़ते समय दिशा को बदलने में सहायता मिलती है । हवाई जहाज देखे होंगे । हवाई जहाजों में भी पिछले सिरे पर इसी तरह की एक पट्टी-सी लगी होती हे । हवाई जहाजों की उड़ने की दिशा भी उसी पट्टी की सहायता से बदली जाती है। उसी तरह चिड़ियाएँ भी उड़ने की दिशा में उसी पूंछ से सहायता लेती हैं, और आकाश में अपना संतुलन कायम रखती हैं। लेकिन पें गुड़न उड़ती नहीं । पानी में तैरती है। इसलिए पेंगुइन को वैसी पूंछ की जरूरत नहीं पड़ती, जैसी दूसरे पक्षियों को पड़ती है। परन्तु पेंगुइन अपनी कठोर और मजबूत परों वाली पूंछ से एक बड़ा मजेदार काम लेती हैं । कभी चिड़ियाघर में सैर करने जाओ तो कंगारूओं को गौर से देखना । कंगारू की पूंछ भी बहुत मोटी और मजबूत होती है। क्योंकि कंगारू जब अपने पिछले दो पैरों की सहायता से आदमी की तरह बैठता है, तो पूंछ को कुर्सी बना लेता है । बैठते समय पूछ के सहारे मजे में बैठ जाता है । कितना अच्छा होता, अगर ऐसा ही साधन हमारे पास होता । जहाँ कहीं थक जाते, मजे से अपने साथ रहने वाली कुर्सी पर बैठ जाते । रेलगाड़ी में जगह न मिलती । सीट पर बैठने को न मिलता तो अपनी सदैव साथ रहने वाली कुर्सी पर मजे से बैठ जाते। न किसी से झगड़ने की जरूरत पड़ती, न लड़ने की । पेंगुइन की पूंछ भी इसी तरह की पूंछ -होती है। वह जब पैरों के सहारे बैठती है, तो पूंछ उसके लिए कुर्सी का काम देती है और . बिना थके पेंगुइन महीने दो महीने वैसी ही बैठी रहती है। 10. पेंगुइन का शरीर भी अन्य पक्षियों की तरह चार हिस्सों 14 : कहानी पेंगुइन की




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