श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 54 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 54

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाण बनाने वालेसे शिक्षा ( १२४२) तदैवमार्मन्यवरुद् चित्तो न वेद फिश्चिद्‌ बहिरन्तर बा, यथेपुकारों नुपर्ति व्रजन्त- मिषौ गतासमा न दददयं पाञ्च ४ ( भरीमा०२१स्क०६ ०१३०) छप्पय गुरु क्रयो इषुकार बान पथ माहि वनावे। हके तन्मय चित्तदृत्ति सर माहि लगावै ॥ राजा सेना सहित गयो चित नाहि चलायौ । इत्ते मूपणि गयोः कललो कटु नहि #सकुचायो 1! शरिपयनि तै वैराग्य करिःनिन नितके श्रभ्यास तै। चित्त मिलापै लदेय तै, आसन प्राणायाम त। देना, सघना, रसलेना, सुनना तथा शीतोप्णका सलुभव करना ये सव काये मनके ही हैँ, ज्ञानेन्द्रियोके द्वारा मन इन श्रवधूत मुनि रजा यदुसे कई रहे दे--राजन्‌ † जच चित्त श्राप्मामें श्रवद्ड दो जाता ई, तो भीतर चाइर किसी मी पदार्पकों नहीं जानता । जिस प्रकार समीरते दी जाती हुई सजाकी समारीकों एक बाण बनाने बालेने बाण चनानेमें तन्मय होनेके कारश देखा ही नदीं ४ ४ १३




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