श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 60 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 60

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(`€ > रहे दोंगे । हम सो उनके यन्त्र हैं, उससे थे लेख लिखा लें, पुस्तक लिखा ले, कीन करा ले, व्याख्यान दिला जँ, भ्रमण क. लः नेतागीरी करा लें, सभी उनके दाथ में है, उनके संकल्प मे घोल कौन सकता है, नलुनच करने को सामथ्य किसमें दे । जैसा थे करति ष, इच्या अनिच्छा पूर्वक करना ही पदेगा । श्राजकल लेखन कार्य बन्द है, भ्रमण चालू है, यह श्राधी भूमिका वम्बई से कलकत्ता आते समय बायुयान में ही लिखी है, श्रब कलकत्ते से दूर भगवती आगीरथी क तट पर बालो नामक स्थान में वांगड़जी के बगीचे मे यैटकर इस भूमिका को पूरी करते दै । गोहत्या श्रादोलन में यदि इस शरीर का भगवान्‌ ने वलि- दान कर दिया, तो इस श्रनित्य तुच्छं शौर नाशवान्‌ शरीर का सदुपयोग हो जायगा, पाठक इन साठ खरडों को ही पढ़कर ` सन्तोप कर लँ । श्रौर फिसी प्रकार य शरीर वच गया श्रौर असु प्रेरणा हुई तो रागे फे खण्ड फिर 'आाते रहेंगे । श्रव तक लोगों को बहुत शिकायतें राई “भागवतो कथा? के श्रागे खण्ड क्यों नहीं श्राये, मैं पिछले किसी खंड में कद भी चुका हूँ, हमारा दिवाला निकल गया था, रिन्तु उस दिवाले को हमने घोषित अमो तक नदीं किया । रव उन श्यामसुन्दर की कूपा है, कि दिवालिया भी हुए तो किसी का. मारकर नहीं हुए । साठ खंड तक की दी दक्षिणा ली थी, रब यह साठवाँ खण्ड चाठकों की सेवा में पहुँच रहा दे लेना पावना बेबाक, पाठक लिख दूं कि चुकता मर पाया । झा श्रागे फिर से व्यापार का लेन देन झारम्भ होगा । देर सबेर हो ही जाती है, फिर भी पाठकों से हम अपने अपराधों के लिये बार वार करबद्ध प्राथंना करते हैं; कि थे हमें हृदय से क्षमा करें हमने बहुत लम्बी प्रेतोत्षा कराई । किन्तु प्रतीक्षा में.सी एक मीठा मीठा आनन्द हो होता दै, जैसे गुदगुदी से हम मागे हैं; करने ,बाले को मना करते हैं,-उससे पडि छाना




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