प्रगतिवाद की रूप - रेखा | Pragati Vad Ki Rup - Rekha
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिवचन्द्र
उन्हें तनिक फुरसत ही नदीं मिलती | च्रौर जब तक उनम यह भावनां नदीं
भर जायगी कि ये-वे एक हैं, दोनो के जीवन मँ प्राण-खम्बन्धी को अन्तर
नदी, तच तकं साम्यवाद् के सिद्धान्त में बल नहीं श्रायगा । हाव-भाव के
जीवन की ही हम जीवन नदीं कहेंगे । जिनके जीवन में सत्यता है, वास्तवि-
कता है, उन्दी के लिए शिष्टवगं कुछ नदीं करता, यह त्रनुचित दै | निम्न
इतने संकुचित हैं कि इसके विरोध में च्रपनी जीम दिला हौ नदी सकते । एक
का जीवन-द्शन अत्यन्त संकुचित है तो दूसरे का विस्तृत । पर राष्ट्रीय ज्ञान
जहाँ अंकुरित द्ोंगे, वहाँ जीवन-द्शन स्वतः ऊपर महत्व म उठ जायगा ।
प्रकृति के विश्लेषण में मनोविज्ञान समवेतर चित्रों की रीलें इकट्ठा करेगा तो
जीवन की व्यापकता स्वतः बदु कर सिद्ध रोगी । खाम्यवाद ऐसी प्रकृति की '
पूर्णता को लकय कर श्रपनी क्रियार््रो मे सजगता भरेगा तो एक उचित
निश्चित जन-संघ के लिए, प्रशस्त मार्ग सम्मुख श्र।येगा जो कर्त्तव्य की सीधी
लकीर पर सबको ले चलेगा । इसके साधारणीकरण मे यह सवेदा स्मरण
रखना दोगा' कि साम्यवाद के उचित नियम में अ्रगति का कोई परिवर्तन तो
नददीं हो रहा है व्यावहारिकं क्रिया कौ शून्यता मे विचरना; मानव-जीवन की
गति को विशिष्ट नहीं बनाना है । साम्यवाद, पहले जनों को व्वावददरिक बनाये ।
इसका ज्ञान अधूरा, पूर्ण दोगा तो निश्चय ही उठा हुश्र। वर्ग अवसर प्राप्त
होते दी पुनः निम्न-जनों को दबा डालेगा, दवबोच डालेगा । चूँकि श्रधिकार
खोना कोई भी नहीं चाहता, दूसरी वात यह कि च्रानन्द् कौ जिन्दगी, सबको
प्रिय है | विशेषकर उच्च, शिष्ट वगं इसका श्रारम्भ से ही श्रादी रहा है ।
उसके लिए यद् अत्यन्त ही कठिन दै किं श्मानन्द् छोड़ कर उससे भी दूर हट
कर पेट के लिए दाथ-पैर दिलाना पड़े । मस्तिष्क-सम्बन्धौ जो कार्यं उसे दो
सकता हैं, वद्द वद्दी थोड़ा ब्रहुत कर खकता दै । इसके आगे के लिए; उसके
पास न शक्ति है, न श्रम ¦ लीवन-व्योति जगाने के लिए एक श्रान्तरिक
स्थिति की मूल-वेतना की अवश्यकता होती है । वदी चेतना मस्तिष्क सम्बन्धी
झनेक ऐसे प्रयत्न करती है, जो दूसरों को समभने में अधिक सहायता देते
दें । यद्द मूल-चेतना, श्रज्ञात-चेतना है । इस श्रज्ञात-चेतना को निम्न समभ
जाय तो मध्य-वर्गीय प्रगतिशील -साहित्यकार उनमें वास्तविक भावना का
श्रति शीघ्र संग्वार-प्रचार दोनों कर सकता है। समभा सकता है, तुम्हारी
स्थिति किस श्ाघार पर टिकी है । उच्च, तथाकथित शिष्टों के साथ तुम्हारा
कैषा, किंख प्रकार का व्यवहार श्रपेक्तित दै इष प्रकार दोनों के ज्ञान के
झन्योन्य मिल श्र समभक जाने पर समता का प्रथं स्ष्ट दो जायगा |
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