झाँसी का गौरव | Jhansi Ka Gaurv

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Jhansi Ka Gaurv by इंद्रा 'स्वप्न' - Indra 'Swapn'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६६ सन्धि की थी । . बुन्देलखण्ड के सभी छोटे शासक उनके अधीन हो गए! ये) अंप्रेजों की इस राजनीति को ऐशवर्य-लोभी छोटे जमींदार राजे नहीं समझ सके थे । शिवराम के तीन पुत्र थे, कृष्णाराव, रघुनाथराब, गंगाधरराब ।' कृष्णा राव सबसे बड़ा पुत्र था, उसके रामचस्द्रराव तामक एक पुत्र पैदा! आ । कृष्णारावकरी शीघ्र ही मत्यु हो गई । अठारह वर्ष की सूवेद!री करके शिवराम भाऊ ने अपने पोते राम. चन्द्ररात्र को अपने स्थान पर सूबेदार नियुक्त कर दिया और स्वय अपना अम्तिम समय अपने इष्टके भजन में व्यतीत करने के लिए ब्रह्मावते चले गए । अन्तिम समयमे शिवराम भाऊ ने अपना पंलग गंगा जी में रखबाया' था और गगा माताकी गोदमं प्राण त्मागेथे। रामचन्द्रराव अभी छोटे थे । उनकी माता सखूबाई आर उनके दीवान गोपालराब राज्य व्यवस्था देखा करते थे ! सखूबाई क्रूर स्वभाव की स्वार्थी महिला थी । झाँसी की स्वयं ही स्वामिनी बनी रहना चाहती थी । रामचस्द्रराव जब बड़े हुए तब सखू- बाई को चिस्ता हुई । कहीं रामचन्द्रराव झाँसी का स्वयं ही स्वामी बन जाए) य सोचते हृष्‌ स्वार्थी सखूबाई अपने पुत्र की ही शत्रु बन गई और ' उसके जीवम का अन्त करने के उपाय सोचने लगी । झाँसी में लक्ष्मी ताल था | रामचन्द्रराव को तेरे का बड़ा चाव था । बह प्रतिदिन लक्ष्मी ताल में तैरने के लिए जाते थे । ताल के ऊपर बुजे बना हुआ था । रामचस्द्रराव उसके ऊपर से ताल' में कूदा करते थे और तैरते थे । सखूबाई ने लक्ष्मी ताल में पानी के नीचे भाले गड़वा दिए ताकि राम द्रराव' जब बुर्ज पर से तैरने के लिए लक्ष्मी ताल में कुदे, तो भाले गड्‌ केर उसका जीवन समाप्त कर रामचन्द्रराव का लालू नामक एक स्वामीभक्त सेवक था । उसे इस पड़यन्त्र कीं रि सी प्रकार सूचना मिल गई, तुरन्त ही उसने अपने स्वामी




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