आर्यिका रत्नमती | Aaryika Ratnamati

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Book Image : आर्यिका रत्नमती  - Aaryika Ratnamati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आर्धिका रत्नमती १५ इम कन्या कानासनानाने बडेप्यारसे मना रखाया। तब नानी ने कहा-- “ग्यह मैना चिडिया है यह घर मे नही रहेगी एक दिन उड जायेगी ।'* नानी जी के यह वचन सबंधा फली भूत हुये हैं । यह मेन १८ व्षे की वय में गहपीजडे में न रहकर उड़ गई हैं जो कि आज हम सबका कल्याण करते हुये बिइव को अनुपम निधि रहो है । इस कन्या के पू्॑जन्म के बुछ ऐसे ही सस्कार थे कि यथा नाम तथा गुण के अनुसार बचपन से ही कस सिद्धांत पर अटल विदनास था । प्रारम्भ मे यह बालिका बाबा, दादी, ताऊ, ताई, चाचा और चाची सभी की गोद मे खेली थी । पिता का तो इसे बहुत ही दुलार मिला था । मोहिनी जी को मयकर कष्ट मना के बाद मोहिनी ने दूसरी कन्या को जन्म दिया । उसके बाद उन्हे जाँघ मे एक भयकर फोडा हो गया । कुछ अताता के उदय से उसका आपरेशन असफल रहा । पुन कुछ दिनो बाद आपरेशन हुआ । डाक्टर ने भी इस बार इन्हे भगवानु भरोसे ही छोड़ दिया था किन्तु इनके दारा जेन समाज को बहुत कुछ मिलना था, इसीलिये ये मात्ता मोहिनी छह महीने ते अधिक समय तक्‌ भयकर वेदना कोक्षेलकर भी स्वस्थ हो गई ओर पून गृहस्थाश्रम के सभी कार्यों को सुचार्‌ चलाने लगीं। यह द्वितीय पृत्री स्वर्गस्व हो गई! पुन मोहिनी ने एक कन्या




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