शारीरिक शिक्षा और मनोरंजन की राष्ट्रीय आयोजना | Sharirik Shiksha Aur Manoranjan Ki Rastriya Aayojana

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Book Image : शारीरिक शिक्षा और मनोरंजन की राष्ट्रीय आयोजना  - Sharirik Shiksha Aur Manoranjan Ki Rastriya Aayojana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 नेतृत्व : पहले शारीरिक दिक्षा का काम किसी भूतपूर्व सिपाही, कलाबाज़, पहलवान, जिमनास्टिक करने वाले या किसी मज़बूत श्रादमी के हाथ में होता था । ऐसे श्रादमी को किसी विशेष क्रिया-कलाप का विशेषज्ञ होने के कारण चुना जाता था । इस बात पर कोई भी विचार नहीं करता था कि क्रिया-कलाप सिखाने की उसकी कितनी योग्यता है ग्रौर बच्चों प्रौर खेलों के सम्बन्ध में उनकी पसन्द को वह कहाँ तक समझता है । परन्तु यह्‌ अच्छी बात है कि सारे देश में यह स्थिति बदल रही है । देश के भ्रनेक राज्यो में शारीरिक दिक्षा सम्बन्धी कालिज या संस्थाएे है जहाँ शारीरिक शिक्षा के भ्रध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाता है । इनमें पर्याप्त शिक्षा- योग्यता वाले चुने हुए पुरुषों श्रौर महिलाओं को सर्ती किया जाता है श्रौर लगभग एक वषं तक की नियत श्रवधि के लिए प्ररिक्षण दिया जाता है । शिक्षा अधिकारी धीरे-धीरे ऐसे नेतृत्व कर सकने वाले योग्य व्यक्तियों की श्रावश्यकता को समझ रहे है । परन्तु श्रब भी ऐसे बहुत से स्कूल हैं जो इसका महत्व न समझने या घन की कमी होने के कारण ऐसे अध्यापकों को नहीं रख रहे हैं । यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि शारीरिक शिक्षा कं श्रध्यापकों की सेवा की शतं भी सन्तोषजनक नहीं ह । उनको वेतन कम दिये जाते है, उनको दिन में और छुट्टियों में भी कई घण्टों तक काम करना पड़ता है श्रौर टीमों को प्रशिक्षण देना पड़ता है या स्कूल की टीमों के साथ मंच के लिए जाना पड़ता है या पिकनिक आर पर्यटन श्रादि का संगठन करना पड़ता है । उनको पढ़ाने का काम नहीं दिया जाता । इससे उनके बौद्धिक ज्ञान पर श्रौर उनकी लैक्षिक मौर सामाजिकं परिष्टा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उनके लिए पदोन्नति की बहुत कम सम्भावनां होती हैं । शारीरिक शिक्षा का श्रध्यापक कई वर्ष तक लगन से सेवा करने के बाद उसी पद पर रहता है जबकि उसके साथी हैंडमास्टर या सहायक हैडमास्टर के पद तक पहुँच जाते हैं रौर सार्वजनिक परीक्षा्रों के परीक्षक नियुक्त किये जाते हैं। शारीरिक शिक्षा का श्रध्यापक यदि बुढ़ापे में काम करना भी चाहे तो उस ग्रवस्था में उसके लिए शारीरिक क्रिया-कलाप करना सम्भव ही नहीं होता । इन बाधाओं के कारण बहुत कम लोग शारीरिक दिक्षा के अध्यापक का काम करना पसन्द करते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि प्रदिक्षित व्यक्तियों की कमी होती है । जब योग्य व्यक्ति न मिलें तो स्कूलों के पास इसकें सिवाय भौर कोई चारा नहीं कि वे दूसरे व्यक्तियों को नियुक्त करे । इस प्रकार सेवा की बुरी शर्तों के कारण श्रयोग्य भ्रष्यापक मिलते हैं श्र श्रष्यापकों को झयोग्य बताकर शर्तों को नहीं सुधारा जाता । फलत:, इस कुचक्र का कहीं श्रन्त नहीं होता । पहले श्रघ्यापक, जो भ्रच्छे खिलाड़ी होते थे रौर खेल-क्द में रुचि रखते थे, खेल कं मंदान में जाया करते थे श्रौर खेलों के संचालन तथा छात्रों को खेल सिखाने में सहायता किया करते थे । वास्तव में, स्कूलों के खेल-कूद सम्बन्धी अरधिकांदा कार्यक्रम इन कक्षा-श्रध्यापकों के उत्साह से ही पुरे होते थे । जब से शारीरिक रिक्षा के विदोष अध्यापक नियुक्त किये जाने लगे हूँ तब से एक खराबी पैदा हो गई है । शारीरिक शिक्षा, जिसमें खेल भी शामिल है. भ्रव शारीरिक शिक्षा के श्रघ्यापक की जिम्मेदारी हो गई है रौर कक्षा-परध्यापक इस श्रोर जरा भी ध्यान नहीं देते । प्रध्यापकों के खेल-कूद में प्रधिक रुचि न लेने का एक कारण यह भी हैं कि शाम के समय प्राइवेट ट्यूदानों का बहुत ज़ोर रहता है। पर फिर भी जहाँ मुख्य ग्रघ्यापक खेल-कूद की ्रोर विष ध्यान देते हैं, वहाँ श्रध्यापकों का सहयोग भी मिल ही जाता हं । पब्लिक स्कूल भ्नौर दूसरी सुव्यस्थित संस्थामनो में अ्रध्यापको.को नियुक्त करते समय उनकी खेल-




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