जैनधर्म शिक्षावली भाग - 5 | Jainadharm Shikshavali Bhag - 5

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Jainadharm Shikshavali Bhag - 5 by उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम - Upadhyay Jainmuni Aatmaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ १६ ) हैं इतनी बातें होते ही सभा का काम भारम्भ्‌ किया गया सभा की भजन पण्डली ने वर्‌ सुन्दर भजन गाने झोरम्भ करदिये जिनको सुनकर प्रत्येक जन इर्पित होता था । भजनों के पश्चात्‌ सभापति थपने नियत किये हुये भ्रासन पर बेठ गये । तव' मंत्री जी ने वाहिर से झाये हुये पत्रों बसे पढ़कर सुनाया जिनमें दो पत्र झवीघ्र उपयोगी थे चहद इस प्रचार सुनाये गये । श्रीमान्‌ मन्त्री जी जय जिनेन्द्र देव ! विनय पूर्वक सेवा में निवेदन है शि-श्ाप न्प्र सभा फे उपदेशुक पएडत त साहिब कल दिन यहां पर पंघारे उन झा एक पाम (प्रकट ) व्याख्यान 'रचापा गया अन्यमतावलम्वियों के साथ ह्वर कचैस्व विषय पर एक दडा भारी संवाद हुआ नियम विपय पूर्वक प्रचन्थ किया छुझा था उन की शोर से दा सन्प।सी पूर्व पक्त में खड़े हुए थे दमारे पशणिढत जीं उत्तर पत्त मे खड़े हुए ये सात दिन तक नियम बद्ध शास्त्राये दारा रहा अंत मे उन सन्यासियो ने ईस पू पक्त छेष उपस्थित किया कि फेल प्रदाता ईश्वर




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