कठोपनिषद् | Kathornishad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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कठोपनिषद्
ग > वनयो न> च > न> > ग जद नव नया > य बाय
योगादभिष्रिधाप्युषनिषदिस्यु-
च्यते । तथा च वक्ष्यति-“खग-
लोका अमृतत्वं भजन्ते ( क०
उ० १।१।१२) इत्यादि।
ननु॒ चोपनिषच्छब्देनाध्ये-
तारो ग्रन्थमप्यभिटपन्ति । उप-
निषदमधीमहेऽध्प्रापयापम इति च।
एवं नेष दोषोऽतरिद्यादिमंसार-
हेतुबिशरणादेः मदिधाच्वथस ।
ग्रन्थमात्रेऽसम्भवाद्विद्यायां च
सम्भवात् । ग्रन्थखापि तादर्थ्येन
तच्छब्दन्वोपपत्तेः, आयुं घृतम् ।
इत्यादिवत् ।
खख्यया वृत्योपनिषच्छब्दो
वर्तते ग्रन्े तु भक्त्येति ।
एवमुपनिपल्निवचने नेव विदि-
छोज्धिकारी विद्यायामुक्त* । विष-
तसादियायां |
~ |
अर्भके योगसे उपनिषद कही
जाती है । “खर्गटोकको प्राप्त होने-
वाटे पुरुप अमरत्व प्राप्न करत है
ऐसा आगे कहेंगे भी ।
शडज्ञा-किन्तु अध्ययन करने-
वाले तो “उपनिपद्' शब्दसे श्रन्थ-
का भी उछेख करते हैं, जैेसे--'हम
उपनिपद् पढ़ते हैं अथवा पदात
है” इत्यादि ।
समाधान-ऐसा कहना भी
दोपयुक्त नही है । संसारके हेतु
भूत अविद्या आदिके चिशरण
आदि, जो कि सद् धातुके अर्थ है
ग्रन्थमात्रमें तो. सम्भव नहीं है
किन्तु विद्याम सम्मव हो सकते है ।
अ्न्थ भी विद्याके ही छिये है;
इसलिये वह भी उस झाब्दसे कहा
जा सकता है; जेसे [ आयुब्नद्धिम
उपयोगी होनेके कारण ] श्वत आयु
ही है” ऐसा कहा जाता है।
इसलिये उपनिषद् शब्द विदामे
मुख्य वृत्तिसे प्रयुक्त होता है तथा
ग्रन्थमें गौणी इत्तिसे ।
इस प्रकार उपनिषद्” शब्दका
निर्वचन करनेसे ही विद्याका विशिष्ट
अधिकारी बतला दिया गया।
यश्च विशिष्ट उक्तो विद्यायाः परं ' तथा विदयाका प्रत्यगासखरूप प्र-
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