चौराहे पर | Chaurahe Par

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Chaurahe Par by उपेन्द्र नाथ अश्क - Upendra Nath Ashak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| # ( उसकी गंध श्रास-पास बहुत दूर तक फैल गई, लेकिन उसे सू घ कर लोगो ने एसे अद विगाड़ा जसे बह मोरी को बदबू हो ।”' नारी की अवैध प्रणय-लीला पर इससे अधिक लाक्षणिक पंक्तियी मैंने श्रन्यत्र नदीं पढ़ीं । रोतो मु मालुम है कि लेखक ने बंकिम बाबू कभी नहीं पढ़ा, फिर भी पन्द्रह तारीख़' का प्रथम परिच्छेद बंगला के उस श्रमर कला- कार को चुभती शेली का सफल श्रनुकरण-सा हो उठा है। भारत में शिक्षा भौ र्मेहगी है श्रौर उस पर हमारे मध्यवगं की बेबसी !--दोनों ही, कथानक के नवीन न होते हुए भी, उसे मौलिक बना देती हैं । फिर भावों का प्रवाह लेखक का श्रपना है । * “मनुष्यता की रूपरेखा” और “मातृत्व की कलक' दोनों ही रेखाचित्र सफल हैं । वे प्राणमय भाषा में लिखे गए हैं । वे हमें जैसे जान बूसकर कुरेदते हैं, नोचते हें श्रौर कोल की तरह चुभते हैं और हम खीजते नहीं, पसीज उठते हैं । आज की सभ्यता की कृत्रिमता के कलंक जो प्रदर्शित करते हैं वे ! (फिर उधर ' सेकंड क्लास कहानिर्यो मे फरस्टं है । शालिनी, बी० ए० “चौराहा” की सबसे हल्की कहानी है, जो अपने जानदार सवादु पर जीतो है 1 शिष्ट च्रौर परिष्टृत विनोद्‌ कौ भी स्वासी इुट उसमें है । शेष कुछ नहीं । पढ़कर दिल बहलाने की चीज्ञ ६ यह, याद रखने की नहीं । शैली शवश्य ही अशिथिल है । राजा रानी की कथाओं और कोरे मनोरंजनमय उपदेशो क उदेश्य से कद्दानी लिखने का युग बोत चुका है । श्राज के झधिकांश दिन्दी लेखक साधा- [१५] 9




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