जल समाधि | Jal Samaadhi

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Jal Samaadhi by गोविन्दवल्लभ पन्त - Govindvallabh Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जल-ससाधि जैसे मी टी तलले देवद का जैकिशन उसकी छायु सगभग पच्चीस यव्षे की होगी । जब वृद्द दस वर्ष का था तव उसकी माता का देहांत हो राया था और जब उसने अट्टारहवें वर्ष सें फेर रक्‍्खा सो पिता जी स्वर को प्रयाण कर गये । भी तक विवाहित ही है । कौन उसके चिवाह की चिन्ता करता ? कोई उसे कन्या देने को भी तैयार नथा। पिता जी मरते समय उसके लिए कुछ खेती छोड़ गये थे शोर दस-बीस घर क्षत्रियों के यहाँ यजमानी के 1 उसके पिता बहुत पढ़े-लिखे तो थे नहीं पर सच्चे सरल और धर्मभीरु थे । पूर्वजों से क्म-कारड की जो शिक्षा-दीक्षा पाई थी उसे बिना कुछ घटा-बढ़ाकर जन्मभर उन्होंने ्पनी जीविका चलाई । जहाँ तक हो सका उसी पर जैकिशन को भी चलना उनका मुख्य ध्येय था। वे जबतक जीवित रहे तबतक जैकिशन उनकी रृष्टि में बँधा हुआ रहा । बुद्धि का तीघ्र था बह । घर ही पर पिता जी ने उसे थोड़ी-बहुत जितनी विद्या उन्होंने सीखी थी वह सब पुत्र को सिखा दी । पुरेहिताई में मी उसे करा दिया । करठ-स्वर मीठा था जैकिशन का । मंत्रों के उच्चारण की दुबलता उसकी स्वर-लहरी में स्नात हो छिप जाती थी । माता-पिता दोनों की सृत्यु से पूण स्वतन्त्र हो गया जैंकिशन किसी का अंकुश न रहा न किसी का डर । केसे पूजा-पाठ स्नास-्रत में कोई कमी नहीं आझाई उसके । जितने घर यजमसानी के पिता जी छोड़ गये थे वे सब-के-सब उससे सेंभालकर रक्‍्खे ही थे । अपने काये में दक्ष सी म्य-विनीत और सभा-चतुर था वह । दूसरों की भलाई के लिए सदैव तत्पर भी रहता औौर श्पपनी बात का घनी भी था । आस्तिक बुद्धि का था देवता और पितरों में भक्ति थी पुरोहिताई के कामों में बहुधा पुस्तक को देखता भी न था ।--मंत्र कंठस्थ थे । फिर कया कसर थी उसमें ? उसका कंठ-स्वर ही उसका शत्रु दो गया।




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