विजयमति जी का आत्म चिंतन | Vijaymati Ji Ka Aatm Chintan

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Vijaymati Ji Ka Aatm Chintan by वसुन्धरा जैन - Vasundhara Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १} समाधि का चान होता है। समाधि योग्य क्षेत्र गुर व देश वी माथणा हो जाती है । 'निविवल्प ध्यान वी सिद्धि होठी है । मोह ममता का नाथ हांता है। नान ध्यान की चद्धि होनी है । थत्र यय्र का व्यवहार आचार पद्धति चात होती है । सिद्ध कत्र जनिशय जप, निपयाटि निपधिकाटि स्थानों का दशन स्पगङ-वाठावरण वाल आनि का नाम जानकारी हा जाती है। जिससे समारयि वी साधना सिद्धि होती है मानव जावनया साधु जीवन म समाधि वा सर्वोत्तम महत्त्व है । समाधि जधय सर्प मे भी यटि एक बार सिद्ध हो जाय तो नियम से ७ ८ भव म आत्मा परमामा बन ही जायगा । हे मुमुस, आत्मन्‌ ! अपने इस उदश्य को सम्मुख रवदर ठुम विहार करा। आत्मा की सिद्धि करो तभी तुम्दारा विहार साथक हाथा। स्याति पूजा, लाभ प्रतिष्ठा का प्रोभन तनिस्भी मत आते दो । धम प्रचार के साथ जात्म घम उपनाधि का तष्य बनाम । हे बात्मन तू दशन नान चारित्र का धनी है । आज वह तरी सम्पत्ति छपी हुई है तू उसे खोलकर देख भले प्रवार सम्हाल गालवा गवावर कयाव बन रहा है। इसका बारण है स्व शवभाव से चिय कर पर मलिपरना। राग एेपारि कषाय विभाव हैं पर हैं। घोष जीव का शत्रु है मात श्रोध का मी है साया पुरोरित है लोभ कातदाल है। जहाँ फोध राजा आय कि मथी जा मूछ तान कर यह हो जाते हैं हॉन्हों भापवा भअपमात असहा अपमान हुआ है भ्ाध ना इडा नियताय बिना ये बस मे नहीं हो सकते माया आवयर भत प्रवार समझाती है सत्य है मान बी बात मानना ही घाहिए। सोभराम जी का तो कहना हा कया दान पपालन जीप लपसपाते लार टपवाते नाक छिनर्त लद्सदाते दस तपार हो जात हैं चिकनी चुपडी बाते बनाने । हाँ हाँ ससार की सय वस्तुआ के अधिपति यापर हैं। आपरा सवसंप्रह कर ही सना भादिए । सुदर मुशैल रम्य षमरीमी भदकी नी देखा वितनी छबीजी है. जितनी रगीली है. अमुक में थ” गुण है. अमुव मे यह अच्छा है यह बुरी । भरे बुरी भी है ता मया हुआ सद्रह हो गर हा लेना चालिएं पढ़ी रहा एषः आर । समय पर बाम आपगा । अरे वक्त पहन पर घाटा दरा और घोटा पगा बाम माता है। कोई वस्तु बुरी भली नहीं सद सचय करो रखते जायो। पट सोम का चश्मा जीव का मन मस्तिप्क इण्पि हाप्पाव भारि सवका यन्त दना है। न इधर वा रहता है न उपर का । हे आरत्मन तू सु है. राध है पर यर सन भूल थी तुश पर यह अपना रय चड़ाय बिना रह सकता है । पाठी जमण्डतु भम्र बैप्टन 'पौवी पाटा साड़ी आटि की सासवा दमत दमक धानि न्यिता-णा कितु हू सावधान रह । इनर पचढ मे पढ़रर थार तु अपन स्वभाव ब्ध्य स्वन्प सै च्युन हो गया तो बस समझ से, समार म इस लोग और परसाक दाना हे घर हो जायंगा।




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