कलयुगलीला भजनावली [अंक 10] | Kalyuglila Bhajavanavali [Ank 10]

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Kalyuglila Bhajavanavali [Ank 10] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एम १५) सुनयो हमारी हे जगवन्धू ॥ टे हितुदीनदयार खामी ॥१॥ दुख जल पूरण कठजुग सागर । न्या प्ट मंन्नपरार खामी २ तीर्थ राज इष गै सिखर पर । बंगढो करत सरकार खामी | यट सुनकर हम जनी दको । उपजो टै इक्वभपारखामी ४ | आन हमारी राज आधिकारी ! कौना सनत तुम स्री सव्र इत ही । तप हे तारणहार खामी ६ यह छ निज दू दाशन कारण लीनीहे शने तुष्धार खामी ७ कीचक अजन से तुम तारे । ठेना हमारी भी संभार खामी ८ रक्षा करो अब अन धरम की । सांबी हे तेरी सरकार खामी ९ न्यामत भारत जात रसातऊ । बेगी से लो ना उभार स्वामी १० १५ वक्र ॥ रुप कमी नहीं हारू दोरे पंडिता | धर्म कभू नहीं हारो मोरे साई ॥ टेक । धर्म के कारण श्रीरखुगई । त्याग दई थी सियारानी सुतदाई १ सीता सती जा अगनछंडपं। कूद पढ़ी थी मन इक न लाई ९ धर्म हेत लाखों सतियनने। दस्ख सहे ओर जान गंवाई । ३। सेठ सुदरशेन धर्म वचायों । जाए चढ़ें थे शूली दुख दाई । ४ । बावन रप क्रियो विश्नू मुनी । जा बरक धर अरुत जगाई ५ मानहुण सुगी धमं चञ्जयो । कष्ट सहे चन्दनम जाई ॥ ६॥ कलजुगम अब शेख सिखा पर। देखोतो कोन विपाति बनआएं७ जो इस गिर पर बंगढे बनेंगे। सगरी ही जन घरम एत जाई <




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