शिक्षा दर्शन तथा आधुनिक प्रवृत्तियाँ | Shiksha Darshan Tatha Aadhunik Pravrittiyan

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Shiksha Darshan Tatha Aadhunik Pravrittiyan by आर॰ पी॰ शर्मा - R. P. Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिंक्षा और सानव-जौवच ' . न 9 इस वर्गीकरण के आधार पर हकं स्मैन्सर्‌ ने अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण की साथकता को स्पष्ट कर, दिक्षा के उद्देश्यों व ' प्रक्रियां की: विरद व्याद्या कर शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बहुत बल प्रदान किया । हम हब स्पेन्सर के पूरणं तकं से सहमत हों या न हों परन्तु इतना स्पष्ट है. कि उसका वर्गीकरण: किसी भी वर्गी- करण से क्रियाओं के क्षेत्र में भिन्न नहीं है । इस सम्बन्ध में .दाशतिकों के पारस्परिक मतभेद इस बात पर नहीं हैं कि मानव को क्या करना है और. क्या नहीं करना है, उसकी क्या आवश्यकताएँ हैं व उसंकी पति के लिए उसे अपना किस. प्रकार का व्यवहार करना है । दाशनिक मतभेद क्रियाओं के मूल्यों पर हैं । वे इस आधार पर हैं कि कौन-सी क्रिया किस क्रिया का. आधार है । इन दानिक मतभेद पर हम अगे. चलकर एक अलग. अध्याय में विचार करेंगे और यह स्पष्ट करेगे कि किस आधार में _ विभिन्न दशंतों में सहमति है और किस आधार पर विरोध । हमारा अभिप्राय यहां पर मानेव-जीवन की आवश्यकताओं की विवेज्वना करता है. और उसके सम्बन्ध में हमने वंज्ञानिक विचारधारा के एक प्रमुख प्रवर्तक के मत. के आधार पर मानव की “समस्त क्रियाओं का वर्गीकरण किया जो वह अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की ति ` के लिए करता है तथा जो उसकी आवद्यकताओं की सुंवक हैं। यदि हम किसी. विशेष व्यक्ति, दाशंनिक व. शिक्षा-द्यास्त्री के विचारों को न लेकर भी चलें और साधा- . रण बुद्धि द्वारा इस विषय पर विचार करें तो हम यह सहज में समक सकते हैं कि हमें जीवित रहना है तथा हमें सबके साथ रहना है। साथ ही साथ यह स्पष्ट है कि... हमे सुन्दर ढंग से जीवित रहना है और दूसरों के जीवन को सुन्दर बनाना है। साधारण बोलचाल के इन चार सूत्रों में मानंव-जीवन की समुची साथकता का रहस्य ..... छिपा हुआ है । जब हम मानव-जीवन की आवश्यकताओं की ब्रात करते हैं तो हमारा... ._....अभिप्राय यही होता है कि किन आवश्यकताओं की पूर्ति होते पर मानव-जीवन 4 सार्थक हो सक्ता है । हमें अब संक्षेप में यह देखना है कि किस प्रकार शिक्षा द्वारा इन... भावश्यकताओं की पूर्ति होती हैं। . . -.... , ० ५ दि (अ) मानव की समरत क्रियाओं के पीछे प्रमुख लक्ष्य, उसको स्वयं जीवित ` ` रहने कौ प्रवृत्ति है जिसके बिना अन्य क्रियाएँ सम्भव ही नहीं हैं । अपने शरीर को ` दृढ़ व पुष्ट बनाना, अपने विभिन्न अवयवो का प्रयोग करना, स्वयं को.स्वस्थ रखना ओर्‌ अपनी समस्त शारीरिक शक्तियों का उपयोग सीखना--ये सव -उतसकी- स्वयं का जीवित रहने को प्रवृत्ति से सम्बन्ध रखती हैं । जन्म से लेकरं मुल्युं पन्त मानव इस परवृत्ति से प्रित होता रहता है । वाल्यकालं व किशोरावस्था में इतना नहीं जितना ` भरौ होने परे तथा वृद्धावंस्था मे उदका जीवनं क प्रति धं वृता जता है बौर वह अधिकाधिक प्रयत्न इसके लिए करता है कि. वह्‌ जीवित रहे. ! उसकी . प्रारम्भिक... 2 शिक्षा उसे अपने शरीर को हद बनाने तथा अयने अवयवी का प्रयोग करने कौ क्षमता = दी द . बती है, घीरे-योरे उसको अपनी योन दक्तियों का प्रयोग: करते. की .. आवश्यकता




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