कथायन भाग - 1 | Kathayen Bhag-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कथायन :. १५
करवटें बदलते-रात वीत जाती! निर्दयी कृढपतो तिषा होता। यहा
से सब पहाड़ पर जा रहे हैं। मैं कहे देती हूं, तुम्हारे बिना कही न
जाऊंगी 1
इस वार पत्थर के देवता ने कीचन को सम्बोधित करके एक पत्र
लिखा--मुक्ते किसी पर विश्ठास नहीं ।. में अकेला हूं लेकिन भूखा हु!
यी भूष शुम गिरा रही है । इसलिये तुम्हें दोप न दूंगा! । यह सब मेरा
टै) प्रर उप्ते मया? दोष किसी का हो। हम दोनों में बव निभेगी
नहीं | तुमको मुझ पर दिव्वास नहीं रहा !. तुम्हारे पत्र हो शरीर की
भूख का परिणाम दै ,-परन्तु वरम चिन्ता मत फरो) जो होगा देखा
जायगा। परिस्थितियां समझौता करा ही लेंगी । लेकिन उसमे मन होगा
क्या? यह कैसी मजबूरी है ! मन न हो फिर भी, . !
श्तेकिन उस घाव को मव वयो करर १ उस ॑ष्टर को बन्द न समझें ?
तुम्हारे दिना मेरी गति कहाँ? तुम पहाड़ उती जायो ।”. इत्यादि
इत्यादि ।
॥ पत्र पा कर काचत पुलकपुलक उठो । क्न्ती ने समाचार पाया तो
वति मनि भाई । काचन वोली, “काहे का मुह मौठा कराऊं ह
वैराष्य का उपदेश दिषा है 1
“हाय दया! इतना भी नहीं जानती '. पुरुप को विरह सत्ताता है
तो उसे बराग्य ही सूझता है”
“और नारी को १?
की *सुघवुघ छोना ।. देव तो, इस उमर मे भी रोते रोते यीं पूज गर
1
ध्यंय की यहू चोट खा कर काचन और भी तरल हो गई ।. बंद पत्ती
दो तभी उड़ जाती! लेकिन सन में अब भी कही काटा था ।. सो पत्र
लिखा --
भियो प्रियतम, पट लिखा भी हो बैराग्य का! हाप ! न जाने
फिसने मेरी दुनिया में आग सगाई है। सोचती हूं यह जाग वुमेंगी भी था
नहीं |. देखिये, मैं कही नहीं जाऊंगो भाप आइये, नहीं हो...1'
उत्तर में ढबन्कॉल आया ।. वार्तें करते समय दोनों काप रहे थे ।
सुनील ने कहा, द अस्वत्य हं! आन सदूःगा॥ तुम चलौ जाओ 1”
म नेही जामी 1» ४
“चमौ जनमि 1”
ऊह् 1
“हो.”
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