मानस के मौलिक सिद्धान्त तथा तदनुकूल साधन प्रणाली | Manas Ke Maulik Siddhant Tatha Tadanukul Sadhan Pranali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ (९ } प्परिणाम स्वरूप शरीर मे मल का संचय होता रहता जो कालांतर में रोग के सूप में प्रगट होता है | इसी तरह माह के कार्ण हयी घन एवं धन द्वारा संगृहीत वन्तो मे सुख दै देसी चास्फा ती ट शौर धन वरोरने से सुख मिलेगा एसी मान्यता होती है नौर घन सग्रह करने की कया दोसौ दै जिसके फल स्वरूप मन में विच्ष प था जाता दै जो चिन्ता फे रुप में प्रकट होता है। ऐसे ही पढ़ने-सुनने से ज्ञान होता है इस धारणा के ्याघार पर जितना पढंगे, सुनेंगे उतना दी ज्ञान होगा ऐसी मान्यता के कारण छधिरु झव्ययन किया जाता है जिसके कारण बुद्धि में ज्ञान के स्थान पर्‌ रहकर संचित होता दैजो प्रावा गमन का मूल कारण है । इसी को शरीर में मल, मन मँ चित्तेषु रौर बुद्धि मे श्रावरण कहा गया ह जिसके फलसस्प रोग, दुख शौर भय नामक वरिताप दते दै । रतः त्रिताप से सुक शने का साधन यद्‌ दै मि देम भोजने, धन श्रौर ध्ययन के सम्बन्य मे गद्दाई से विचार करें । सोज करने से हमें संसार में ऐसे -ब्यस्ति मिलेंगे जी अधिक भोजन के द्वारा छापने शरीर में किसी अंश में पशुयल्न का समावेश तो कर पतते हं परन्तु भयानक रोगो -वे ग्रत रते र भौर धिना पूरी श्रायु भोगे दी स्वर्ग सिधार जाते हैं। इसके विपरीत छुछ लोग ऐसे भी मिलेंगे, चाहे वे गिनतीमे यहुत्त थोड़े ही क्यो न शो, जो शक्ति का सम्बन्व भोजन से न मानकर भोजन-संयम की शोर 'अप्रसर होते है '्रौर उसके द्वारा शरीर मे एक 'ान्तरिक शक्ति के जागरण का 'अजुपव करते हैं. जिसके परिशाम स्वरूप वे रोग-मुक्त होकर वेद के इस वाक्य-- 'ज्ञीवेम शरद, शतम्‌ झदीनस्या शरद: शतमू ।! के झतुसार नोरोग रददकर सौ चप पूरी घु नोगते ह । इस लोगों के वीच इसी संसार में डाक्टर वारबरा मूर, एम० ढी०, एक रसौ महिला ज्ञो माज से (१६६२ से) लगमग र वर्ष पहिंएे आरतवपे आयी थीं और हिमालय परत में बुध महात्मानो से 5




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