धूर्ताख्यान | Dhurtakhyan

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Dhurtakhyan by श्वेताम्बर भिक्षुक - Shwetambar Bhikshuk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) जीकी अंगुरी इन -तीनोके संयोगसे रक्त्कुडली नामक पुरुपकी उत्पत्ति इदं ! यह भी शिवजीसे आज्ञा मांगकर खेतकुःडखीके साथ ठ्डने र्गा । दोनोकी लड़ाई देव- ताओंके एक हजार वर्तक होती रदी । निदान देवने वीचमें पड़कर इस लड़ाईको रोकी और उक्त दोनों यो- द्वाऑ्मेसे एक तो इन्द्रको सोप दिया ओर दूसरा ख- यैको सोप दिया और यह कह दिया कि, जव भारतका युद्ध हो, तव तुम इन दो्नोको युद्धकी वृद्धिके लिये म- नुष्य रोकमें भेज देना ! तदनन्तर भारतके समय सूर्यने कुन्तीके रूप छावण्यपर मोहित होकर उसके साथ सं- भोग किया, जिससे रक्तकुडली नामका योद्धा उसके गर्भम आ गया । पूरे नव महीने बीतनेपर ऊन्तीने उसे अपने कणं ( कान ) के रास्तेसे जना, जिससे उसका नाम कणे हुआ । जव छोटेसे कानमेंसे कण जैसा शूर वीर उत्पन्न हो गया, तब कमंडछुकी टॉंटीमेंसे आपका निक- ठना क्या बड़ी वात है? सरूलदेव--और अगाध जठसे भरी हुई गंगानदीको में अपनी भुजाओंसे कैसे तिरा होऊंगा!? .. . कंडरीक-रामायणमें लिखा हैं कि, रामचन्द्रजीकी आज्ञासे जब सीताका पता ठगानेके लिये हनुमानजी लंकाको गये थे, तब समुद्रको हाथों हाथ ही तैरकर गये थे । जिस समय वे सीताजीसे जाकर मिले थे, उस स- मय सीताजीने रामकी कुरार क्षेम पूछनेके वाद प्रश्न किया था कि; तुम समुद्रके इस पार कैसे आये ? तव ह- नुमानने हाथ जोड़कर कहा था--




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