धूर्ताख्यान | Dhurtakhyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
जीकी अंगुरी इन -तीनोके संयोगसे रक्त्कुडली नामक
पुरुपकी उत्पत्ति इदं ! यह भी शिवजीसे आज्ञा मांगकर
खेतकुःडखीके साथ ठ्डने र्गा । दोनोकी लड़ाई देव-
ताओंके एक हजार वर्तक होती रदी । निदान देवने
वीचमें पड़कर इस लड़ाईको रोकी और उक्त दोनों यो-
द्वाऑ्मेसे एक तो इन्द्रको सोप दिया ओर दूसरा ख-
यैको सोप दिया और यह कह दिया कि, जव भारतका
युद्ध हो, तव तुम इन दो्नोको युद्धकी वृद्धिके लिये म-
नुष्य रोकमें भेज देना ! तदनन्तर भारतके समय सूर्यने
कुन्तीके रूप छावण्यपर मोहित होकर उसके साथ सं-
भोग किया, जिससे रक्तकुडली नामका योद्धा उसके
गर्भम आ गया । पूरे नव महीने बीतनेपर ऊन्तीने उसे
अपने कणं ( कान ) के रास्तेसे जना, जिससे उसका नाम
कणे हुआ । जव छोटेसे कानमेंसे कण जैसा शूर वीर
उत्पन्न हो गया, तब कमंडछुकी टॉंटीमेंसे आपका निक-
ठना क्या बड़ी वात है?
सरूलदेव--और अगाध जठसे भरी हुई गंगानदीको
में अपनी भुजाओंसे कैसे तिरा होऊंगा!? .. .
कंडरीक-रामायणमें लिखा हैं कि, रामचन्द्रजीकी
आज्ञासे जब सीताका पता ठगानेके लिये हनुमानजी
लंकाको गये थे, तब समुद्रको हाथों हाथ ही तैरकर गये
थे । जिस समय वे सीताजीसे जाकर मिले थे, उस स-
मय सीताजीने रामकी कुरार क्षेम पूछनेके वाद प्रश्न
किया था कि; तुम समुद्रके इस पार कैसे आये ? तव ह-
नुमानने हाथ जोड़कर कहा था--
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