शिषर वंशोत्पति पीढ़ी वर्तिका | Shishar vanshotpati peedhi vartika

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Shishar vanshotpati peedhi vartika  by पुरोहित हरिनारायण - Purohit Harinarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिक क्य परिशिष्ट भाग । ९ भूमिर सिख जानि के भनन्वर शनक क्विके वंशम से प° दम. साथी बी एु०, ८८० ५८० वीत सवम शोखाटी के द्वारा और ठा० -बाव सिंह जी द्वारा तथा बारइट बाउूभक्ष जी इर्जूतियावार्डों भौर भयादक “कनियाँ झुरारीदुनजी से कई ५+ विशेष बातें आल हुईं । उनमें इक तो मूसिका में बयास्थान या दी नदद, शेप को च्छं छिलते है (१) कविच्छं मोषार का जन्म-कर तो दीन निखा नहीं, परंतु वे ७० वर्पकी उमर में मरे ये जतः १६७२ का संचप्‌ उनका जन्म का संचप अखुनान से भत्ता है, क्योंकि नवसाव ञननग संवत्‌ १९४२ निक्रमी, भिची भादों बढ़ी १४ का उनके चंशर्नों से जाना गया है । (२) उददैडरना भौर चोला का वास मिशन मिशन नहीं हैं, एक ही गाँव के नाम दहे । कवि के मोतीदान चन्न से जाना गया कि य्ह एक चोला जर नदा दातार था जिसने सदीर्ने को सेरीरानड़ी दी थी भौर च६ शलिन समर घनाब्य था, इससे इसे चोखा का चास' सी कहने रथ गये थे । (५) चिदीवरक कोई पृथक्‌ श्त नदीं है! चद रन्द्‌ चदान = च्चढी न बाल है, जिसका अथं चंडी ( देनी, करणी चार्यं की इथ ऊ देवी ) का बाल पुन दोला है 1 चारण रोय सवने जापको कस्मी के न 8 ईह, सोके चंडीनाल्त सन्द से ५२८ होता है । (४) “पूरव जनको भोन? चह < ५ा< ^दृर्‌न जीण को भन?




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