महाकवि देव | Mhakavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुष्ठभूमि धू
“दो रहा था | तत्कालीन साहित्य में मीलिकता के ग्रभाव का एक बड़ा
कारण यह भी है |
'घीरे-घीरे मुयूल राज्य की समात्ति के वाद झ्ंग्रेज़ सत्तारूदू दोते
गए | इसके याद कुछ अंग्रेज़ी सम्यता का प्रभाव पड़ने लगा और शिक्षा
में भी बद्धि हुई । फिर भी जन्म का कोढ़ एक दिन में केसे मिटता ?
कार्नवा लस ने भारतीयों को रूरकारी नौकरी में लेना बहुत सोच-सम
कर बंद किया था | उसने देखा कि भारतीयों का नेतिक स्तर इतना
गिर गवाह कि घूस, रूट णवं घोखा द्रादि उनके बाएं हाथ का खेल
डै | कार्नचालिस का यह विचार उस समय के भारतीय समाज पर काफी
अकाश डालता हैं |
इस प्रकार हम देखते हैं कि समाज जीर्ग-शीर्ण तथा जर्जर था
तर उसमें द्शिना, ग्रंध.वश्वाख णवं नैतिक पतन का श्रकंड तांडव
को रहा था |
ग) आर्थिक दशा
ऊपर दम लोग समाज को करई वर्गों में बाँट चुके हैं | उच्चवर्ग की
चर्थिक दशा ब्रहुत ही अच्छी थी | उस सस्ती के ज़माने में शाहजहाँ की
वार्पिक दामदनी २२ करोड़ रुपए थी | उच्चवर्ग खाते-खाते मरता था |
पर दूसरी श्रोर अन्य वर्गों की द्यार्थिक दशा बहुत ही प्रात्र थी | बेचारे
चिना खाव्रे मरते श्रे | सरस्वती लद्मी की, चेरी वन चुकी थीं | कलाकार
नवानों के लिम्े मेते फिरते भे । ,
निम्नचर्ग को तरह-तरह के कर देने पद़ते थे | जज़िया फिर से हिंदुओं से
पलिया जाने लगा था | ठगी दौर चोरी से भी लोगों की श्रार्थिक हानि
दो रही थी | बेगार करने के कारण निम्नवर्ग कभी-कभी अपनी मजदूरी
मे भी वंचित रह जाता था | दूकानदारों को फ़सरों को घाटा सहकर
सामान देना पड़ता था| इस प्रकार उनकी भी ग्रार्थिक दशा च्रच्छीन
थी | कृपकों की दशा तो और मी बुरी थी । अकाल आदि से तो प्रखल
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