प्रभाती | Prabhati

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Prabhati by पं. सोहनलाल द्विवेदी - Pt. Sohanlal Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| 1 १ ॥ = जागो जागो निद्रित भारत त्यागो समाधि हे योभिराज नेगी फूको, दो शंखनाद्‌ उम का डिमडिम नव-निनाद्‌ © ~~ = ड = ~ हे दाकर के पावन प्रदेशा खोलो त्रिनेत्र तुम लाल लाल कटि में कस लो व्याघ्रांबर को कर में त्रिशूल लो फिर संभाल ! @ ~~ विस्मरण हुआ तुमको केसे वह पुरय पुरातन स्वणंकाल ? अपमान तुम्हारे कुल का लख हो गई पावंती भस्म क्षार ! वह दक्ष प्रजापति का महान मख ध्वंस हुआ, भर गया शोर , कप उठी घरा, कंप उठा व्योम , सागर में लहरों प्रलयरोर ! किस रोषी ऋषि का करुद्ध शाप है किए बंद स्द्ति-नयन छोर ? जागो मेरे सोने वाले अब गई रात, आ गया भोर! भी. मी 1




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