माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की व्यावसायिक संतुष्टि पर शैक्षिक -उपलब्धि एवं शिक्षण -अभिक्षमता के प्रभाव का अध्ययन | Effect Of Educational Achievement And Teaching Aptitude In Relation To Job-Satisfaction Of Secondary School Teachers
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
182 MB
कुल पष्ठ :
309
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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्रज्ञापूर्ण मस्तिष्क व प्रेमपूर्णं हृदययुक्त विद्यर्थियो का निर्माण करे।
समस्त पूर्वाग्रहों व संस्कारबद्धता से मुक्त होकर नवीन मूल्यों के निर्माण में विद्यार्थियों को
सक्षम बनाए।
विद्यार्थियों को अंश के स्थान पर समग्र जीवन का बोध कराए। `
भययुक्त विद्यालीय परिवेश के माध्यम से आत्मबोध कराए।
ज्ञानात्मक विकास व तकनीकी प्रशिक्षण के साथ-साथ विद्यार्थी को जीवन के प्रति एक समन्वित
दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करे तथा उसमें वैश्विक समझ विकसित कर सके।”
शिक्षा के जो कार्य हैं, जो भूमिका है या शिक्षा के द्वारा बच्चों को जो भी संस्कार दिए जाने हैं
या जो विद्या या मूल्य प्रदान किये जाने हैं, शिक्षक का उन सभी में पारंगत होना बहुत ही आवश्यक है।
शिक्षा के दायित्वों को भली-भांति सहन करने वाला व्यक्ति ही सच्चा शिक्षा हो सकता हैं।
महान दार्शनिक एवं विचारक अरविन्द घोष' ने भी शिक्षक के बारे में कहा है कि -
“अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुरमाली होते हैं, जो संस्कारों की जड़ों में अपने ज्ञान की
खाद देते हँ ओर अपने श्रम से सीच-सीव कर उन्हें महाप्राण शक्तियाँ बना देते हैं। “
शिक्षक पूरी शिक्षा-प्रक्रिया की धुरी है। शिक्षक पूरे समाज के उत्थान में अपनी शक्ति लगाता
है क्योंकि उसका जीवन राष्ट्र निर्माण में समर्पण के लिए ही है। महान शिक्षाविद् एवं भारत के राष्ट्रपति
ठ. जाकिर हुसैन ने 5 सितम्बर 1964 को शिक्षक-दिवस के मौके पर शिक्षकों को एक संदेश देते हुये
कहा कि
अध्यापक केवल अपने आपके लिये ही उत्तरदायी नहीं होता, बल्कि वह पुरे समाज के लिये
उत्तरदायी होता है। वह उन उच्चतम मान्यता का परिरक्षक होता हें। जो कि उसके अपने ही लोगो द्वारा
स्थापित की जाती हैं ऑर संजोकर रखी जाती हैं अध्यापकों का यह मिशन ऑर जिम्मेदारी हैं कि वे
आजाद लोगों के निर्माण के सबसे अधिक सार्थक कार्य के लिये वचनबद्ध हैं। ह ध
प्राचीनकाल में बालक जब गुरु ग्रह मे पढने के लिये जाता था तो वह अपनी शिक्षा-अवधिमे हु
1. .... उद्धृत, नरेश कुमार, 'प्राइमरी शिक्षक' (त्रैमासिक पत्रिका), नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान है.
......... एवं प्रशिक्षण परिषद, अक्टूबर, 2003 पृष्ठ 48... +
2. रूही फातिमा, भारतीय आधुनिक शिक्षा (त्रैमासिक पत्रिका). नई दिल्ती; राष्ट्रीय शैक्षिक
अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, अक्टूबर 2005, पृष्ट-44 = ` 2
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