मूल संस्कृत उद्धरण भाग -4 | Origional Sanskrit Texts
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
480
श्रेणी :
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राम कुमार राय - Ram Kumar Rai
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय १
जगत् की उत्यत्ति, श्रौर हिरएयगसं, प्रजापति अ्रथवा ब्रह्मा
नामक देवता से सम्बद्ध वेंदिक क्तो, ब्राह्मणे,
श्र पुराणों इत्यादि से उद्धरण
खण्ड १--खष्टि ओर हिरण्यगर्भ सम्बन्धी ऋग्वेद के उद्धरण
खष्टि-विषयक अनुमान --ऋर्वेद् १०. १२९
वेद १०.१२९,१ :-न असद् आसीद् नो सद् आसीत् तदानीं न
असीद् रजो नो व्योम पतो यत्। किप् अवरोवः कुदकस्य शसन्नू
अम्भः क्रिम् आसीद् गहन गभीरम् | २.न पृद्युर् आसीद् अमृतं न
तर्हि न राशर्या अह आसोत् प्रकेतः । आनीद् अवाति स्वधया तदू एक
तस्माद् दान्यद् न परः किच्चनास । ३. तम आसीत् तमसा गृहम्
अरेः अभरकेतं सलिल सवम् आ इदम् । तुच्छयेन आगभ्ब् अपिहित यदू
आसोत् तपसस् तद् महिनाऽजायतैकम् । ४. कामस्? तद् अग्रे समवत्त-
~~~
^ विष्णु पुराण १२,२१ मौर बाद, एक श्लोक ( जिसके स्रोत का सकेत
नही है ) उद््रत करता है जो बहुत अणो तक प्रस्तुत उद्धरण पर आधृत
प्रतीत होता है, और अपनी पुष्टि के लिये श्रधान -विपयक साख्य सिद्धान्तका
आश्रय लेता है . वेद-वाद-विदो विप्रा नियता ब्रह्मवादिन: । पठन्ति वे तमु
एवाथंमु प्रधान-प्रतिपादकमु । २२ नाहो न रात्रिर् न नभो न भरूमिर्नासीत
तमो ज्योतिर् अभूद् नगञ््यत् । श्रो्रादिबुद्धयानुपरमभ्यम् एकम प्राघानिकमु ब्रह्मा
पुमास् तदासीत् । “श्रुति के ममं को जाननेवङ, श्रुतिपरायण ब्रह्मवेत्ता महात्मा
गण इसी अथं को लक्ष्य करके प्रधान कै प्रतिपादक इस इ्छोक को कहा करते
दै. उस समयन दिन थान रत्रिथी, न आकाश था, न पृथिवी थी,न
अन्धकार था, न प्रकाश था और न इनके अतिरिक्त कुछ और ही था । बस,
श्रोनादि इन्द्रियो और बुद्धि आदि का अविपय एक प्रघान ब्रह्म पुरुष ही था ।””
* कुल्छूक ने मनु १४ पर व्याख्या करते हुये इन शब्दो को उद्घृत किया
हैं, और उस स्थल का यही स्रोत हो सकता है ।
* शतपथ ब्राह्मण आदि से मैं भागे जो स्थल उद्घृत करूँगा उनमे यह्
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