चिकित्सातत्वप्रदीप | Chikitsatatvpradeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
896
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ठ
थी । हां; जहाँ ऐलोपेथी का वर्गीकरण भिन्न दै-आयुरवेद से न्दी
जमता वहो वही करम रक्खा गया है । यही कारण दहै कि ज्वर-प्रकरण
तथा पचनेन्द्रियसंस्थाव्याधि-प्रकरण॒ के रोगों के अन्त में आयुर्वेद के
क्रम का भड्न प्रतीत होता है । अस्तु
इन बातों के अतिरिक्त अन्थ में कोई भी वात ऐसी नहीं लिखी है
जो पुष्ट-प्रमाणु-युक्त न हो । जहाँ तक वना हे, व्यथं शब्दाडम्बर न
वदते हए युक्तियुक्त सिद्धान्तो को ही अन्थ में स्थान दिया गया है।
प्रयोग भी वे ही दिए हैं जो सेकड़ों वार के अनुभव किये हुये हैं। इन
सारी बातों को देखते कहना पड़ता है कि ग्रन्थ नितान्त उपादेय, सवके
लिये उपयोगी तथा पढ़ने योग्य हे ।
मन्थ की यह् भी विशेषता हे कि इसमें शारीरिक अवयवों के १७
चित्र और नाड़ीयन्त्र के ५ रेखा-चित्र दिए हैं। अधिक चित्र भी दिये
जा सकते थे; परन्तु अधिक चित्र कदाचित् इसलिए नहीं दिए गए हैं
कि ऐसा करने से अन्थ के मूल्य में भी बग्रद्धि करनी पड़ेगी । इसीलिए
यह संकोच किया गया प्रतीत होता है) ध्रण्की एनार्योभी मँ लगभगः
१४०० चित्र हैं, उसका मूल्य भी ३०) रु० है, फिर भी उसके २७
संस्करण हो चुके हैं । कारण यह है कि इंग्लेंडड धन सम्पन्न देश है:
ओर हमारे भारत में भी ऐलोपेथी के लिये सरकार की ओर से पूं
सहायता है । यह् सुविधा आयुर्वेद के लिए नहीं ह अर न आज की
भारतीय जतना भी इतनी धन-सम्पन्न है जो अधिक मूल्य के अन्थ को
खरीद सके । अस्तु,
फिर भी अपने प्रयत्न म लेखक के सफल होने के कारण मुझे बड़ी
प्रसन्नता है । मेँ लेखक को आन्तरिक धन्यवाद देता हुआ सर्वसाधारण
से साम्रह निवेदन करता हूँ कि वे रसतन्त्रसार व सिद्धप्रयोगसंत्रह की
तरह इस चिकित्सा-तत्त्व-प्रदीप को भी अपनावें और इसके प्रकाशक
कष्णगोपाल आयुर्वेदिक घर्माथ ओपषधालय कालेड़ा-बोगला ज़ि० अज-
मेर को पूणं सहायता प्रदान करे क्योकि यद् प्रयत्न “नात्मार्थं नापि
कामाथमथ भूतदया प्रति हे अथात् यह जनता-जना्दैन की सच्ची
सेवा के निमित्त दी हे !
वीकानेर, श्रीगोवघन शर्मा छांगाणी
ता० १५। ६ । १६४० ( नागपुर निवासी ) ।
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