अथर्ववेद शतकम | Atharvaved Shatakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सव द्विशाभामं अभयदे
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भावार्थे इन्द्र! आप ही सव के
रक्षक तथा सुखदायक हैं; हमें भी सुखी
6 करे । सम्मुख तथा पीछे से भी हमें कभी
है दुःख प्राप्त न हो, सदा हमारे मह्गछ ही मज्ञछ
6 सम्मुख दो, आपकी छपा से दुःख कभी
हमारे समीप न फटके ॥ ३ ॥
इन्द्र॒ आशाभ्यस्परि सर्वीम्यो अभ॑यं करत्।
जेता शत्रून विचर्षणिः ॥४॥। २०५७११०]
ठाद्दार्थ--( इन्द्र: ) परमेश्वर ( स्वोभ्यः
आशाभ्य: परि ) पूर्व पश्चिम आदि सब
दिशजं से हमे (अभयं करत्) निभेय करर
( जेता श्चरन् ) सव शत्रुओं को जीतने वि
र ( विचपणिः ) उन सव के द्रष्टा ६।
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