अथर्ववेद शतकम | Atharvaved Shatakam

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Atharvaved Shatakam by वाचस्पति - Vachaspati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चदे नत -चदो चे, य-द “द > 22 दोन दो 1 सव द्विशाभामं अभयदे ~~ ~~ ˆ “~~~ - ~ < क - व क छ भ य क न = 0 पद ) | ७ भावार्थे इन्द्र! आप ही सव के रक्षक तथा सुखदायक हैं; हमें भी सुखी 6 करे । सम्मुख तथा पीछे से भी हमें कभी है दुःख प्राप्त न हो, सदा हमारे मह्गछ ही मज्ञछ 6 सम्मुख दो, आपकी छपा से दुःख कभी हमारे समीप न फटके ॥ ३ ॥ इन्द्र॒ आशाभ्यस्परि सर्वीम्यो अभ॑यं करत्‌। जेता शत्रून विचर्षणिः ॥४॥। २०५७११०] ठाद्दार्थ--( इन्द्र: ) परमेश्वर ( स्वोभ्यः आशाभ्य: परि ) पूर्व पश्चिम आदि सब दिशजं से हमे (अभयं करत्‌) निभेय करर ( जेता श्चरन्‌ ) सव शत्रुओं को जीतने वि र ( विचपणिः ) उन सव के द्रष्टा ६। मावा्थ--हे सर्वज्ञ सवेक्षक्तिमन्‌ जग- ९ १ है है ¢ ९ नमन शक हि कक “या रा पो) ~> ~ कि हे ॐ द द पटो मन “फल ९ ¢ # है 9 १ ॥ १ है ¢ १ 9 १ 9




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