कशी गौतम संवाद | Keshi Gautam Sanvad

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Book Image : कशी गौतम संवाद  - Keshi Gautam Sanvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) नही हो सकता । ज्यो-ज्यो ज्ञान की वृद्दि हो, त्यो त्यों श्राचार परिपक्व होना-पुष्ट होना चाहिए । किन्तु आज इससे विपरीत बात ही नजर श्राती है। ज्यो-ज्यो ज्ञान बढता है, त्यो-त्यो आचार शिथिल बनता है । तो फिर विचार करें--यह ज्ञान बढ़ा या अज्ञान । ९प्रीचार दो प्रकार के होते ह~ सदाचार ओर दुराचार । जो शास्त्र- सम सदाचार की पोषक है-निर्माता है, वही सम सम्यग्‌ ज्ञान ओर जो लास्त्र-प्रमन्न दुराचार की पोषक या निर्माता है,' वह मिथ्या ज्ञान है । कई व्यविठ शास्त्र सुनकर या पढ़कर, उसमे से विषय को पुष्टं करने वाली बातें ग्रहण करते हैं तो कई अपने दोषों को छिपाने के लिए शास्त्र को ढाल रूप मे बना लंते हैं । जो शास्त्र ज्ञान तारक हैं, वे उसे मारकू बना डालते हैं । अपने दुराग्रह, दुरभिनिवेश कर दुराचार के पोषण के लिए शास्त्रों का इस प्रकार प्रयोग किया जाता है कि सत्य का पता लगाना ही मुश्किल हो जाता है। शास्व को शस्त्र बना डालतं है। शास्त्र से स्वायं-पोषण की धुक्तियाँ निकालते हैं-- पण्डितजी ने पुछा--'वया समझे' ? कथा-वाचक पण्डिन्जी एक नगर मे पहुँचे । लोग वोले-- पण्डितजी महाराज ! कथा सुनाओ ।' ण्डितजी ने पूछा-'कौनसी कथा सुननी है तुम्हें ।' “पण्डितजी । रामायण तो हम पढते ही हैं । सप्ताहजी मेँ भागवत्‌ भी सुन लेते हैं। भाप तो महाभारत की कथा सुनाइये ।' पण्डित जी महाराज महाभारत सुनाने लगे ` वड़े रोचक ठंग से) कथा फी चर्चा राजसभा मे पहुचौ । राजा को भौ सुनने की इच्छा हुई । राजा अति वृद्ध था 1 उसने अभी तक झाद्योपान्त महाभारत सुना' नहीं था । घतः




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