दो कदम सूर्योदय की ओर | Do Kadam Suryoday Ki Or

Do Kadam Suryoday Ki Or  by आचार्य श्री रामलाल जी - Acharya Shri Ramlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो कदम सूर्योदय की ओर / 11 भविष्य की चाबी स्वत: ही हाथ में आ जाएगी | भविष्य की चिन्ता नहीं रहेगी । जैसा चाहोगे, वैसा भविष्य निर्मित कर सकोगे | यदि चाबी को स्वयं नहीं संभाला और वह दूसरे के हाथ में पकड़ा दी तो फिर वह जैसे चलायेगा, वैसे चलना पड़ेगा | यंत्रवत्‌ स्थिति हो जायेगी | पौरुष जागृत नहीं कर पाएंगे। इस प्रकार प्रकारान्तर से पौरुष की हत्या कर देंगे और स्वयं के प्रति हिंसा करने के अपराधी बन जायेंगे | इसलिये यदि इस हिंसा से बचना है तो पौरुष को जागृत करो, यदि पौरुष जागृत हो गया तो अहिंसा के भाव जागृत हो जायेंगे, अतः पहली आवश्यकता तो यह है कि स्वयं की हिंसा मत करो । यदि प्रमाद में पड़े रहे तो पौरुष जगा नहीं पाओगे, यह स्वयं की हिंसा है, अतः पहले स्वयं को उबारने का प्रयत्न करो। तात्पर्य यह है कि प्रदर्शन का नहीं बल्कि यथार्थ स्वरूप को प्रकट करने का प्रयत्न हो। यहाँ जो स्वतंत्रता का उद्घोष हे, वह इसलिये है कि यदि क्रांति घटित होगी तो स्वतंत्रता की डगर पर चरण-न्यास होगा अन्यथा व्यक्ति स्वछंदता को ही स्वतंत्रता मान कर पथभ्रष्ट होता रहेसा। स्वत॑त्रता उपादेय हे, जबकि रवषछदता त्याज्य हे | एक ऊपर उठाने वाली है तो दूसरी नीचे गिराने वाली है। इनका रूप इतना मिलता-जुलता है कि दूर से देखने पर ये समान लगती हे, इसलिये व्यक्ति इन्हें पहचान नहीं पाता | तनिक कल्पना कीजिये- एक दुकान है, जिसमें दो पुतलियाँ लगी हैं। व्यापारी आते हैं और अन्य दुकानों को देखता हुआ एक ग्राहक भी उस दुकान में पहुँच जाता है। वह दोनों पुतलियों को देखता है- रूप-रंग मेँ दोनों सदृश है। वह मुग्ध हो जाता है- ओह ! कितनी सुन्दर कलाकृत्ति हे ! किन्तु नीचे वृष्टि दौडती है तो देखता है कि एक पर लिखा हे कीमत र्पौच रूपये ओर दूसरी पर पचास हजार रूपये ग्राहक सोचने लगता है, ये कैसी बात ! यह कैसी बुद्धिमानी है, कीमत में इतना अन्तर क्यों ? कहीं दुकानदार से लिखने में भूल तो नहीं हो गई है ? ग्राहक पूछता है तो दुकानदार कहता है- भूल नहीं हुई है। उसका कथन सही है। समान मुूर्तियाँ,




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