मानव की कहानी | Manav Ki Kahani

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Manav Ki Kahani  by डॉ. रामेश्वर गुप्ता - Dr. Rameshvar Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रागृदेतिहासिक मानव ५ पैरों के श्रलावा श्रपने दो हाथों के बल मी चला करते थे; एवं उनका मस्तिष्क अभी तक पृश मानव जितना विकसित न हो । इस प्राणी का सिर मोटी हडिड्यो का वना होता था अतएव मस्तिष्क घारण करने के लिये सिर में स्थान कम होता था । विशेषकर सिर का श्रगला माग जिसे माथा कृतेर श्रौर जिसमें विचार, वाणी एवं स्मरण शक्ति का स्थान है, वह तो श्राज के मानव के माथे से ग्रपेक्षाकृत बहुत ही कम विकसित था श्रौर जिसका पिछला माग जो स्पशं, दृष्टि एवं णारारिक शक्ति से सम्बन्धित है, वह भ्रधिक विक- सित था । इस श्रादमी के बड़े बड़े नाखून होते थे और शरीर पर बड़े-बड़े बाल । वह्‌ जंगली जानवरों से बहुत डरता था । रींछ, शेर, चीता श्रादि बड़े- घड़े जानवर तो उसे शिकार ही बना लेते थे । जंगली गाय, मैँसे, घोड़ा श्रादि भी श्रनेक बार उसे मार डालते थे । इन जानवरों का मुकाबला करने के लिये उसका पहला काम मिट्टी या पत्थर का इला या लकड़ी की छड़ी उठाना था । जानंवरों से भिन्न उसके शरीर की बनावट ऐसी थी कि श्र गूठे श्र उ गलियों का प्रयोग इसप्रकार कर सके, फिर उसमें चतुराई, चालाकी, साहस का उदय हूश्रा 1 शनैःशनैः फिर तो पत्थर, चकमक इत्यादि के हथियार बनने लगे होंगे । भ्रद्ध-मानव की इस दशा को जंगली श्रवस्था ही कह सकते है । चेतना, मन, समभक् का श्रघिक विकास श्रमी तक उसमें नहीं हो पाया था । रहन-सहन भ्रद्ध मानव वस्तुतः जंगली जानवर ही थे । ये रद्धं मानव-पहिले तो यों ही इधर-उघर घूम फिरा करते होंगे । फिर इन लोगों ने खुले में ही किसी पानी वाले स्थल के निकट (1 कील, नदी, तालाब के निकट) श्रपना वास करना मारम्भ क्रिया ।श्रग के प्रयोग से इनका परिचय हो गया--श्रतएव खुले में ही श्रपने बैठने, रहने सोने की जगह के चारों झोर रात्रि को तो श्राग जला लेते थे जिससे जंगली जानवरों को वे दूर रख सकें । दिन में ये लोग शाग को रोख के नीचे दवा कर रख देते होंगे । बार-बार श्राग को जलाना इन लोगों के लिए कठिन होता होगा । 'वकमक पत्थरों की रगड़ से, या पत्थर भौर किसी धातुके द्रुकडं की रगड़ से सुखे पत्तों द्वारा ये श्राग जलाया करते होंगे । कुछ थोड़े से लोगों का एक छोटा सा समूह एक साथ रहता था । चुदढा श्रादंमी जो समूह का पिता होता था वही समूह का मालिक होता था । समूह के सब युवा, स्त्री, बच्चे उससे डरते थ्रे । वह॒ तो वैठा-बैठा पत्थर, चकमक पत्थर तथा हड्डियों के ऑ्रौजार बनाया करता था और उनको तेज किया करता था-बच्चे उसका अनुकरण किया करते थे--स्त्रियां जलाने के लिये रन्धन, एवं श्रौजारों के लिए पत्थर, चकमक बीन कर लाया करती थीं, दिन में युवा लोग भोजन, शिकार की तलाश में निकल जाते थे । बुडढा युवाग्रों को स्त्रियों से स्यात्‌ नहीं मिलने देता था । बुदूढा युवाभों को समूह्‌ से बाहर कर देता था या मार मी दिया करता था । श्रवसर श्राने पर स्त्रियां और युवा लोग माग जाया करते थे ।




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