बोरिस एदर मेरे पशु - मित्र | Boris Adar mere Pashu Mitra
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.75 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जा लगी। भालूराम ने भी मेरी खूब खातिर की। उन्होंने झपना पजा निकाल मेरी जाघ पकड़ ली । मैने जैसे-तैसे अपनी जान बचायी । मगर फिर भी रीछ के तीखे पजो ने मेरी जाघ पर अपना निशान छोड ही दिया। इससे भी बुरी बात यह हुई कि मेरा एक ही एक सूट भी बरबाद हो गया । भला उस दिन तैरने की कौन सोचता मै कोल्या के घर अपनी पतलून की मरम्मत कराने चला गया। कोल्या की माता ने जैसे-तैसे पतलून को सी -सा दिया। उस दिन मै कोई शभ्राधी रात गये डरते डरते घर पहुचा। मैं खूब समझता था कि मा रीछ को दोषी न ठहदरायेगी। सच मानिये जगली जानवर से उस पहली मुठभेड की याद श्राज तक मेरे दिमाग में ताजी बनी हुई है। यह कहना तो शअ्रतिशयोक्ति होगी कि बचपन से ही मै सरकस के ख्वाव देखा करता था। सच तो यह है कि बारह बरस तक मुझे सरकस की दुनिया के बारे में कुछ जानकारी ही न थी। उसी साल पहली बार मै एक सफरी सरकस कपनी का खेल देखने गया था। अर बस पहली नज़र से ही में सरकसी मुहब्बत का दिकार हो गया। एक दिन मेरे साथी हाफते हाफते मुझे यह बताने झ्राये कि द्राज एक सफरी सरकस कपनी का खेल होने जा रहा है। हम सब सरकस देखने चल पड़े। एक चौक मे हमे बडा तवू दिखाई दिया। इसके ७ प्रवेश - द्वार पर मसखरो मदारियों श्रौर तरह तरह के जानवरों की तस्वीरे बनी हुई थी। कपनी के खिलाडी तरह तरह के करतव श्रौर कलावाजिया कर लोगो का ध्यान सरकस की शोर खीच रहे थे। यानी बतला रहे थे कि लोगो को क्या कुछ श्रजूबा देखने को मिलेगा। हम दग हुए यह सब तमाशा देख रहे थे। लेकिन किस कवरत के पास एक फूटी कौडी भी हो। सरकस का मालिक मकक्खी मार रहा था कि में श्रौर मेरा दोस्त उसकी भ्राख बचाकर तवू में दाख़िल हो ही गये। श्प
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