जीव और कर्म विचार | Jeev Aur Karma Vichar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.24 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जांच ओर सूप-चिचार | [१७
हि अकन फिलक: ।5ि५
नहीं करता ऐ और पर्दे सदित फार्माकों तप द्वारा जला देता है
दस समय जन्म-मरण से संफर रहित शद्धकीय दो जाता है ।
यद्यपि जीय-्व्य इस्ट्यिगोचर नहीं है। तो भी कर्म
सदित दोनेसे घरीरादनिमें इृष्टिग्गोचर शोता हैं लौर स्पानुमव
में प्रत्यल्न ै ।
ययपि जीय-द्रब्य मंजर अमर-महय आर अधिनाशीक दै,
खुदा मग्पड है, यमिनन सै, मक्षिन्न रै, शाध्यत है, नित्य हैं। अग्मि
इस ज्ञीवट्रच्यस्सो भस्म नहीं कर सको है । हार छेदन नहीं कर
सक्त है, उदरापात इसको पोडित नहीं कर सकता हैं । चाय
इसकों उड़ा नहीं सकी है, ज्ञल-प्रयाह इसको प्रवादित नहीं कर
खक्ता है, पृथ्वी अपने पेटमें घर नहीं सक्की हि, भूमंडल की ऐसी
चोई ज्वदंस्त शक्ति नहीं है जो इस भाह्मा पर जपना अधिकार
जमा सझे | जात्माकी शक्ति सर्वोपरि है, ात्माफा प्रभाव सर्वो-
छा और सर्चोच हैं। भात्माका यल जपूर्व और ब्रिलोककों
घोस करने चाला हैं । सात्साफा वीर्य तीत लोक और तीन कात्ठ
सर समस्त पदार्थों पर प्रभुत्य रखने चाला हिं। भात्साका सादस
अद्म्य है । सात्साका धेयं अतुव्य ई । मात्माकी गति मवणंनीय
है । पक समयर्मे चोदद्द राजू प्रयेत गमन दो सकता है । आात्माका
पशक्रम अनंत है; वद्ध आदिकों सी मेदूव कर अपना सायं फरता
है । झात्माकषा तेज थपरंपार है; कोटि द्र्ष भी ऐसा तेज प्रकट
नददीं कर सक्ते हैं | चद्द भी यक्षय ओर मनंत है । आात्साकी शाति
सपूर्च दि ऐसी शांति अन्य पदार्थमें सबंधा नहीं है । आत्माका
पर
न
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