जीव और कर्म विचार | Jeev Aur Karma Vichar

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Jeev Aur Karma Vichar by शुक्ला ज्ञानसागर - Shukla Gyansagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जांच ओर सूप-चिचार | [१७ हि अकन फिलक: ।5ि५ नहीं करता ऐ और पर्दे सदित फार्माकों तप द्वारा जला देता है दस समय जन्म-मरण से संफर रहित शद्धकीय दो जाता है । यद्यपि जीय-्व्य इस्ट्यिगोचर नहीं है। तो भी कर्म सदित दोनेसे घरीरादनिमें इृष्टिग्गोचर शोता हैं लौर स्पानुमव में प्रत्यल्न ै । ययपि जीय-द्रब्य मंजर अमर-महय आर अधिनाशीक दै, खुदा मग्पड है, यमिनन सै, मक्षिन्न रै, शाध्यत है, नित्य हैं। अग्मि इस ज्ञीवट्रच्यस्सो भस्म नहीं कर सको है । हार छेदन नहीं कर सक्त है, उदरापात इसको पोडित नहीं कर सकता हैं । चाय इसकों उड़ा नहीं सकी है, ज्ञल-प्रयाह इसको प्रवादित नहीं कर खक्ता है, पृथ्वी अपने पेटमें घर नहीं सक्की हि, भूमंडल की ऐसी चोई ज्वदंस्त शक्ति नहीं है जो इस भाह्मा पर जपना अधिकार जमा सझे | जात्माकी शक्ति सर्वोपरि है, ात्माफा प्रभाव सर्वो- छा और सर्चोच हैं। भात्माका यल जपूर्व और ब्रिलोककों घोस करने चाला हैं । सात्साफा वीर्य तीत लोक और तीन कात्ठ सर समस्त पदार्थों पर प्रभुत्य रखने चाला हिं। भात्साका सादस अद्म्य है । सात्साका धेयं अतुव्य ई । मात्माकी गति मवणंनीय है । पक समयर्मे चोदद्द राजू प्रयेत गमन दो सकता है । आात्माका पशक्रम अनंत है; वद्ध आदिकों सी मेदूव कर अपना सायं फरता है । झात्माकषा तेज थपरंपार है; कोटि द्र्ष भी ऐसा तेज प्रकट नददीं कर सक्ते हैं | चद्द भी यक्षय ओर मनंत है । आात्साकी शाति सपूर्च दि ऐसी शांति अन्य पदार्थमें सबंधा नहीं है । आत्माका पर न




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