दीवान - ए - ग़ालिब | Deewan E Ghalib

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाता हैं. ताराजे काविशे गमे हिजरा हुआ, “'असद,' सीन* कि था दफीन:, गुहरहा-ए-राज का. मेरा सीना सच्चाई रूपी हीरो का खज़ाना था. इस में राज्ध के सेकडो हीरे और जवाहरात दफन थे. लेकिन अफसोस कि महबूब की जुदाई के सदमें न यह खज़ाना हम से छीन लिया, अगर यह मृहब्बत का गम मुझे तबाह न कर देता तो सें अपने सीने में सच्चाई के सेकड़ो राज़ छुपाए रहता. वज्मे शाहनशाह मे अद्आर का दफ्तर खुला, रखियो यारव यह दरे-गजीन.-ए-गौहर खुला यह शेर 'ग़रालिब' ने हिंदुस्तान के आखिरी बादशाह बहादुरशाह ज़फ्रके दरवार के वारे में कहा हे, फरमाते हे: शहनशाह की महफिल में शेरो का दफ्तर खुल गया है, यानी शायरों की इज्जत होनें लगी है. यारब, यह सदाबहार दरवाज़ा हमेदा हमेशा खुला रहे ! चूकि जिस की पहुच दरवार में होती थी उसे हीरे जवाहरात और इनाम मिलते थे इसलिए वादशाह के दरबार को हीरो के खज़ाने का दरवाज़ा कहा गया हैं. शव हुई, फिर अजुमे रखशिद' का मजर खुला, इस तकल्लुफ से, कि गोया नुतकदे का दर खुला रात के बारे में उट्दू में ऐसे बहुत ही कम शेर हैं जिन में गम और जुदाई का चर्चा न किया गया हो. लेकिन 'गालिब' ने इस शेर में रात का नया ही पहलू निकाला हैं. फरमाते हे' रात हो गई हे और चमकदार सितारों का नज़ारा यो मांखो के सामने खुला है जते किसी बृतखाने का दरवाज्ञा खुल गया हो और सैकडो शोख हसीन अपना अपना हुस्न और जलवा दिखा रहे है परे ही रद हज




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