मिलन | Milan

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Milan by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा परिच्छेद [ ४० ¡ फिर पहिले सा खुगम सम हुआ तरंगिणी का पाथ। तरी कहाँ है ? सद्य प्रस्फुटित कुसुम-ऋली ले साथ ॥ कुमुद कुमुदिनी मदे देखकर प्रखर दिनेश-प्रकाश । नहीं निक्रलने भी पाया था विश्व-विमोहक वास ॥ পিসি সক “ंद्सश परिच्छेद* १ गगन-नीलिमा में हीरे का तेजपुंज अभिराम | एक पुष्प आलोकित करता था जल-थल-नभ-धाम ॥ बरछी सी उसकी किरनों से. खाकर गहरी चोट | अंधकार हो क्ञीण छिपा जा तरु-पत्तों की ओट ॥ हे . [२] द তুল ছিবিজ से कुछ ऊपर उठ वह अति विमल प्रकाश | करता था सब सचराचर की निद्रा तनन्‍्द्रा नाश ॥ तरल तरंगित सरित-सलिल मं उसकी प्रभा ललाम ! लहक रही थी, ज्यों कफडते हो रजत-पुष्प श्रसिराम ॥ [३ दिव्य मुतिं मुनि एक तपोधन शांत-वृत्ति मतिधीर । भरते थे जलपात्र नीर से उस तटिनी फे तीर ॥ बहता देख पक शव जल में उन्हे हुआ संदेह । सदय हृदय कोतृहलवश हो धर ली बढ़कर देह ॥ [४ बाहर लाकर पुरुष-वेश में. देखा नारी-रल्रा कांति देख मुख पर जीवन की मुनिवर हुये सयनल्ञे ॥ भर ` निकरस्थ कुरी मे शव को लाकर कर उपचार ! मुदित हये चैतन्य बनाकर मुनि सदुगुणश-आगार ॥




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