मिलन | Milan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
45
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा परिच्छेद
[ ४० ¡
फिर पहिले सा खुगम सम हुआ तरंगिणी का पाथ।
तरी कहाँ है ? सद्य प्रस्फुटित कुसुम-ऋली ले साथ ॥
कुमुद कुमुदिनी मदे देखकर प्रखर दिनेश-प्रकाश ।
नहीं निक्रलने भी पाया था विश्व-विमोहक वास ॥
পিসি সক
“ंद्सश परिच्छेद*
१
गगन-नीलिमा में हीरे का तेजपुंज अभिराम |
एक पुष्प आलोकित करता था जल-थल-नभ-धाम ॥
बरछी सी उसकी किरनों से. खाकर गहरी चोट |
अंधकार हो क्ञीण छिपा जा तरु-पत्तों की ओट ॥
हे . [२] द
তুল ছিবিজ से कुछ ऊपर उठ वह अति विमल प्रकाश |
करता था सब सचराचर की निद्रा तनन््द्रा नाश ॥
तरल तरंगित सरित-सलिल मं उसकी प्रभा ललाम !
लहक रही थी, ज्यों कफडते हो रजत-पुष्प श्रसिराम ॥
[३
दिव्य मुतिं मुनि एक तपोधन शांत-वृत्ति मतिधीर ।
भरते थे जलपात्र नीर से उस तटिनी फे तीर ॥
बहता देख पक शव जल में उन्हे हुआ संदेह ।
सदय हृदय कोतृहलवश हो धर ली बढ़कर देह ॥
[४
बाहर लाकर पुरुष-वेश में. देखा नारी-रल्रा
कांति देख मुख पर जीवन की मुनिवर हुये सयनल्ञे ॥
भर ` निकरस्थ कुरी मे शव को लाकर कर उपचार !
मुदित हये चैतन्य बनाकर मुनि सदुगुणश-आगार ॥
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