सैंतालीस शक्ति विधान | Saintalis Shakti Vidhan

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Saintalis Shakti Vidhan  by राजमल पवैया - Rajmal Pavaiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सैंतालीस सक्ति विधानि १३ २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३० समस्त, कर्मो के द्वारा কিপ্ন गये, ज्ावुत्वमात्र से भित्र जो परिणाम उन परिणामों के करणके उपरमस्वरूप (उन परिणामों को करने की निवृत्तिरूप) अकर्तुत्वशक्ति। (जिस शक्ति से आत्मा ज़ातृत्व के अतिरिक्त, कर्मों से किये गये परिणामों का कर्ता नहीं होता, ऐसी अकर्तत्व नामक एक शक्ति आत्मा में है।। समस्त, कर्मों से किये गये, ज्ञातृत्वमात्र से भिन्र परिणामों के अनुभव की (-भोक्तृत्वकी) उपरमस्वरूप अभोक्‍तृत्वशक्ति। | समस्त कर्मों के उपरंमसे সব आत्मप्रदेशों की निस्पन्दतास्वरू्प (-अकम्पतास्वरूप) निष्क्रियत्व्क्ति। (जब समस्त कर्मो का अमाव हो जाता है तब प्रदेशों का कम्पन मिट जाता है इसलिये निक्क्रियत्व शक्ति भी आत्मा में है।) जो अनादि संसार से लेकर संकोचविस्तार से लक्षित है और जो चरम शरीर के परिमाण से कुछ न्यगून पर्मिण से अवस्थित होता है ऐसा लोकाकाश के माप जितना मापवाला आत्म-अवयवत्व जिसका लक्षण है ऐसी नियतप्रदेशत्वशक्ति। (आत्मा के लीक परिमाण असंख्य प्रदेश नियत ही हैं। वे प्रदेश संसार अवस्या में संकोचविस्तार को प्राप्त होते हैं और मोक्ष-अवश्था में चरम शरीर से कुक्कु क्रम परिमाण से स्थित रहते हैं।) सर्ब शरीरं में एकस्वरूपात्मक ऐसी स्वक्षर्मव्यापकत्वशक्ति। (शरीर के धर्मरूप न होकर अपने अपने धर्मो मं व्यापने रूप शक्तिं शो स्वधर्मव्यापकन्वश्चक्ति है 1) स्व-परके समान, असमान र खमानासंमान हसे तीन प्रकार के भावौ की धारण-स्वरूप साधारण-असाधारण- साधारणासाधारण- धर्मत्वशक्ति। विलक्ष (-परस्पर भिन्न लक्षणयुक्त) अनन्त स्वभावो से भातित एेसा एक भाव जिसका लक्षण है ऐसी अनन्तधर्मत्वशक्ति। तदरूपमव्ता ओर अतदृरूपभयता जिसक लक्षण है ऐसी विरुद्धधर्मत्वशक्ति। तदूप भवनरूप ऐसी तत्त्वशक्ति। (तत्स्वरूप होनेरूप अथवा तत्स्वरूप परिणमनरूप ऐसी तत्त्वशक्ति आत्मा में है। इस शक्ति से चेतन चेतनरूप से रहता है-परिणमित होता है।) अतद्रूप भवनरूप एसी अतच्वशक्ति। (तत्स्वरूप नहीं होनेरूप अथवा




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