हिन्दी काव्य का स्वरूप विकास | Hindi Kavya Swaroop Vikas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
114 MB
कुल पष्ठ :
713
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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किन्तु लोक प्रचलित कथाओं तथा प्राचीन आख्यानों और कथाओं के अध्ययन
से पता चक्कषता है कि आख्यानों का प्राचीन रूप गद्य-्पद्य मिश्रित ही रहा
होगा। भोजपुरी प्रदेश में सारज्ञा-सदाहइज तथा अन्य कई ऐसे ल्लोकन्प्रचल्चित
आख्यान हैं जो गय्यन्पद्य मिश्रित हैं। प्राचीन साहित्य में सर्वध्रथम ब्राह्मण-
ग्न्न्धों में गद्य पद्चमय आख्यानो के उदाहरण मिलते हैं। ऐतरेय बाह्मण में
शुन शेप तथा शतपथ ब्राह्मण में पुरूरवोवंशी के आख्यान गद्य-पत्य मिश्रित हैं ।
गाथा नाराशंसी :--
ऐसे आख्यानों को प्रारम्भ में गाथा या गाथा नाराशंसी कहा जाता था
ओर बाद में इन्हीं को इतिहास, पुराण, आख्यान नाम दिया गया। अथर्वचेद
८ १४-०६-१०,११,१९ ) में गाथा ओर गाथानाराशंसों का नाम इतिहास-पुराण
के साथ लिया गया है। शतपथ बाह्यण में अश्वमेघ यज्ञ का जो वश्न है उससे
ज्ञात होता है कि यज्ञ के अवसर पर पारिप्कव आज्यान होता था, अर्थात् घोड़े के
भ्रमणार्थं चरे जने पर वषं भर तक दस-दस दिन के अन्तर से कल्ला, ज्ञान आदि
के प्रदर्शन का आयोजन होता था । उसमे गाथा भ्नौर दतिहाघ्त कहने की कला
भी प्रद्ित होती थी! दिनम बराह्मण श्चौर राभि मँ राजन्य वीणा पर उनका
गान करते थे, ! बाहो की गाथां कसी राजाके दानयायक् की प्रशंसा
को जाती थी भौर राजन्य उक्ती वीरता ओौर थुद्धों का गान करता था । फिर
जब यज्मान और श्रध्चयु साथ बेठते थे तो अध्ययु होता से कहता था कि तुम
इस राजा को औरों की तुलना में प्रशंसा द्वारा ऊँचा उठाओ्रो। इसके बाद
पारिप्लव-गान प्रारम्भ होता था। तदुनन्तर वीणा बजाने वाले वीणा पर राजा की
प्रशंसा के गीत गाते थे । सन्ध्या समय फिर राजन्य वीजा पर स्वरचित तोन छन्दो
का गान करता था। इससे यह पता चलता है कि गाधा या गाथा वारा्शसी
प्रशस्तिमुलक आख्यान द्वी था जिसमे इतिहास-पुराण भरी मिला दोत! था। वेदों
की दन-स्तुति को भो नाराशंसी गाथा कहा जाता था श्रोर अश्वमेघ यक्ता,
उत्सवों ओर संस्कारों के समय उनका गान करने की प्रथा थी। आश्वल्ञायन
गुह्य-सूत्न में कहा गया है कि येदु-मन्त्नों का गाव करने वालों को इतिहास, पुराण
और गाथा नाराशंसी का भी गान करना चाहिए | काठक संद्दिता ने इन गाथाओं
को मिथ्या बताया है. क्योंकि इनमें राजाओं की अतिशयोक्तिपूर्ण प्र्शसा रद्दती
धी 1 ऐतरेय ब्राह्मण ( ३-२५-५ ) में आख्यानविदू शब्द का प्रयोग हुआ हे ।
शतपथ ब्राह्मण ( ३-६-२, ७ ) में सुपणाख्यान् कने वारे को श्राख्यानविदू
43. शतपंथ ब्राह्मण ( १३-४-३-२, १४ )।
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