आजादी की लड़ाई और सुभाष बाबू | Aazaadii Kii Lang-aaii Aur Subhaashh Baabuu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ आज़ादी की लड़ाई बंगाल, बंबई और मद्रास को गवनर-जनरल के अधिकार में दे दिया गया। लेकिन गवनर-जनरल वारन हेस्टिग्स के कारबार से लोगों में और भी असंतोष बढ़ा, जिससे सन्‌ १७७४ में एक दूसरा क़ानून पास किया गया जिसके द्वारा संचालक सभा (कोट ऑफ़ डाइरेक्टर्स) के ऊपर नियामक मंडल (बोड ग्राफ कन्ट्रोल) की नियुक्ति की गई । इसके बाद सन्‌ १८३३ में सनद जारो करते समय कम्पनी को हिन्दुस्तान पर शासन करने की सत्ता सौंप दी गई, और अब ब्रिटिश ताज की ओर से हिन्दुस्तान पर कम्पनी हुकूमत करने लगी। सन्‌ १८३३ और १८०३ के दरम्यान कम्पनी ने पंजाब और सिंध जीत लिय, तथा लॉड डलहोजी की नीति से कम्पनी के इलाके में काफ़ी ब्रद्धि हो गई । इस समय ब्रिटिश पालियामेंट ने कम्पनी के ऊपर और भी अंकुश लगा दिये, रौर बंगाल को एक अलग सूबा बना दिया। लेक्नि कम्पनी के अत्याचारों में इससे कोई कमो न हुई। लंड इलहौज़ी ने कई लावारिस राजाओं की रियासतें ज़प्त कर लीं और अवध की रियासत को ब्रिटिश भारत में मिला लिया। प्रजा में आधिक शोषण बढ़ने से सबंत्र कंगाली फैलने लगी । एक श्र॑प्रेज ने इस समय का वणन करने हुए लिखा है-- “कम्पनी के शासन-काल में भयेकर अशांति और बईमानी बढ़ रही है, तथा प्रजा ग्ररीबी और नाना विपत्तियों स थंत्रस्त है, अतएवं शासन का भार खद सरकार को अपने हाथ में ते लना चाहिय ।'? लेकिन इस का कोई असर न हुआ, झौर १८५७ में हिन्दुस्तान में सशख-कांति का जन्म हुआ । कुछ लोगों ने इस ग्ररर या बगावत का नाम दिया है, लेकिन वास्तत्रमें यह हिन्दुरतानियों की आज्ञादी का प्रथम संग्राम था जिसमें हिन्दू ओर मुसलमानों न कंथ से कंधा मिलाकर अपन! खून बहाया था)




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