जापान | Japan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Japan by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

Add Infomation AboutRahul Sankrityayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जापान १ --जापानके रास्तेंमें . धर्मा जापान जानेके लिए २९ मार्च १९३५ ई० को कलकता पहुँचा । यदि चाहता तो आगेके जहाजोंका प्रोग्राम वहीं निश्चय कर डालता किन्तु कार्याधिक्यके कारण वैसा न कर सका । रंगूनसे पेनाडके जहाजके बारेमें भी थिना कुछ जानें ही श्री जगदीश काश्यपके साथ दो अपेलकों ब्रिटिशू भिंडिया नेंवीगेशन्‌ कम्पनीके जहाजसे रंगूनके लिए रवाना हुआ । बीच सिर्फ इसी कम्पनीकें जहाज हूँ । भारतीय रेलों की भांति यहाँ भी धघाँधली है । प्रथम हिंतीय और डक तीन ही श्रेणियाँ हैं । द्वितीय श्रेणी और डेकके भाछें में पाँचगुनेका अन्तर हैं करूकत्तेंसे रंगूनका १४ और रंगूनसे २४ कुछ ३८ रुपये देने पढ़ें । हितीय श्रेणीमें यह किराया पौने दो सौ रुपयेंके क़रीब पता यानी हमारी पूँजीका एक बढ़ा हिस्सा पहुँचनेंगें ही आछ जाता जिसीलिये हमने डेकूका ही टिकट लिया । 3० करूकतेंसे रंगूनको हपतेमें तीन बार स्टीमर जौता हैं । रविवारका जहाज डाक-जहाज़ होता है और बह तासरे ही दिन रंगून पहुँचा देता




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now