जापान | Japan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.78 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जापान १ --जापानके रास्तेंमें . धर्मा जापान जानेके लिए २९ मार्च १९३५ ई० को कलकता पहुँचा । यदि चाहता तो आगेके जहाजोंका प्रोग्राम वहीं निश्चय कर डालता किन्तु कार्याधिक्यके कारण वैसा न कर सका । रंगूनसे पेनाडके जहाजके बारेमें भी थिना कुछ जानें ही श्री जगदीश काश्यपके साथ दो अपेलकों ब्रिटिशू भिंडिया नेंवीगेशन् कम्पनीके जहाजसे रंगूनके लिए रवाना हुआ । बीच सिर्फ इसी कम्पनीकें जहाज हूँ । भारतीय रेलों की भांति यहाँ भी धघाँधली है । प्रथम हिंतीय और डक तीन ही श्रेणियाँ हैं । द्वितीय श्रेणी और डेकके भाछें में पाँचगुनेका अन्तर हैं करूकत्तेंसे रंगूनका १४ और रंगूनसे २४ कुछ ३८ रुपये देने पढ़ें । हितीय श्रेणीमें यह किराया पौने दो सौ रुपयेंके क़रीब पता यानी हमारी पूँजीका एक बढ़ा हिस्सा पहुँचनेंगें ही आछ जाता जिसीलिये हमने डेकूका ही टिकट लिया । 3० करूकतेंसे रंगूनको हपतेमें तीन बार स्टीमर जौता हैं । रविवारका जहाज डाक-जहाज़ होता है और बह तासरे ही दिन रंगून पहुँचा देता
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