वीरों की कहानियां | Veeron Ki Kahaaniyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
81
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ वीरोंकी कहानियाँ
गिरते ही पुत्रने मुकुट, छत्र आदि राज-चिह् घारण कर लिये। यह देखकर
बररीर्खौ नामका मुसटमान सरदार उसके मुकाव्रिटेपर आ परुचा |
नरङीखँकि एक कठिन प्रहारसे रामापिहकी तख्वार टूट गई, ता भी बह
लड़ता रहा और उसी टूटी तलवारसे लड़ते हुए बरलीखँकि तीन साथि-
योंको मारकर उसने वीर-गति प्राप्त की ।
मद्धीभर राजपूत आखिर कर्दोतक कड सकत थे । उन सबने अपनी
मयांदाकी रक्षाके लिए एक एक करके प्राण दे दिये । युद्धका अन्त हो
गया। आकाशरमें उड़ती हुई धूलि चिर-निद्रामें सोते हुए सात आठ
हजार शवोंपर बैठकर शान्त हो गई ।
निदेय बादशाहने बडी उत्सुकतासे अहोरके किलेके भीतर प्रवेश
किया; परन्तु उसने वहाँ क्या देखा ए निजेन स्मशान । दवनदाहकी
दु गन्धिसे वायुमंडर व्याप्त हो रहा था ओर चितामें अब भी अग्नि दहकः
रही थी । राजपूतोंके जौहर ब्रतका वर्णन उसने पहले कई बार सुना था,
इसालिए उसे यह समझनेमें विछम्ब न लगा कि यहाँ भी उसी ब्रतका
उद्यापन किया गया है । इससे उसे बड़ी निराशा हुई | उसका पाषाण-
हृदय भी इस नारी-हल्यासे द्रवित हो गया । कुछ समयके लिए उसे
ऐसा मादरम इआ कि भेने यह काये अच्छा नदीं किया। वह मन-ही-मन
कहता था--
४ तन खुदा ही मिला न विसाले सनम,
न इधरके हुए न उधरके हुए। ”
हे &
परन्तु उसकी यह निराशा शीघ्र ही आशाम परिणत हो गई। थोड़े
ही दिनेंमि उसके पास संदेश आया कि “ छाछा अभी जीती है।
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