वीरों की कहानियां | Veeron Ki Kahaaniyan

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Veeron Ki Kahaaniyan by कुंवर कन्हैयाजू - Kunvar Kanhaiyaju

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ वीरोंकी कहानियाँ गिरते ही पुत्रने मुकुट, छत्र आदि राज-चिह् घारण कर लिये। यह देखकर बररीर्खौ नामका मुसटमान सरदार उसके मुकाव्रिटेपर आ परुचा | नरङीखँकि एक कठिन प्रहारसे रामापिहकी तख्वार टूट गई, ता भी बह लड़ता रहा और उसी टूटी तलवारसे लड़ते हुए बरलीखँकि तीन साथि- योंको मारकर उसने वीर-गति प्राप्त की । मद्धीभर राजपूत आखिर कर्दोतक कड सकत थे । उन सबने अपनी मयांदाकी रक्षाके लिए एक एक करके प्राण दे दिये । युद्धका अन्त हो गया। आकाशरमें उड़ती हुई धूलि चिर-निद्रामें सोते हुए सात आठ हजार शवोंपर बैठकर शान्त हो गई । निदेय बादशाहने बडी उत्सुकतासे अहोरके किलेके भीतर प्रवेश किया; परन्तु उसने वहाँ क्‍या देखा ए निजेन स्मशान । दवनदाहकी दु गन्धिसे वायुमंडर व्याप्त हो रहा था ओर चितामें अब भी अग्नि दहकः रही थी । राजपूतोंके जौहर ब्रतका वर्णन उसने पहले कई बार सुना था, इसालिए उसे यह समझनेमें विछम्ब न लगा कि यहाँ भी उसी ब्रतका उद्यापन किया गया है । इससे उसे बड़ी निराशा हुई | उसका पाषाण- हृदय भी इस नारी-हल्यासे द्रवित हो गया । कुछ समयके लिए उसे ऐसा मादरम इआ कि भेने यह काये अच्छा नदीं किया। वह मन-ही-मन कहता था-- ४ तन खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधरके हुए न उधरके हुए। ” हे & परन्तु उसकी यह निराशा शीघ्र ही आशाम परिणत हो गई। थोड़े ही दिनेंमि उसके पास संदेश आया कि “ छाछा अभी जीती है।




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