विद्यार्थियों से | Vidhaarthiyon Se

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Vidhaarthiyon Se by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ विद्याथियों से साधारणतः सत्य में सोन्दर्थ देखने में असफल रहते हैं, साधारण मनुष्य सौन्दर्य के पीछे दौड़ता और अन्धा हो जाता है। मनुष्य जब कभी सत्य में सोन्दर्य देखने लगता है तभी सत्य कला का एक आविर्भाव होता है ।? इस पर रामचन्द्रन्‌ ने पूछा--/परन्तु क्या सत्य से सौन्दर्य और सौंदरय से सत्य अलग नहीं हो सकता १? गांधीजी ने उत्तर दिया--“हमें यह ठीक-ठीक जानना चाहिये की सोंदर्य क्या है? यदि यह वह है जो मनुष्य साधारणत; शब्दों द्वारा समझता है तब तो वह बहुत दूर है। क्या एक सुडौल आकृति वाली ख्री अनिवार्य रूप से सुन्दर होगी १” रामचन्द्रन्‌ ने बिना सोचे समझे कहा--“हाँ |? बापू ने पूछा --“यदि वह बुरे आचरण की हो तो भी १” रामचन्द्रन्‌ हिचकिचाया ओर उत्तर दिया--“परन्तु इस दशा में उसका मुख सुन्दर नहीं हो सकता। सर्देव ही अन्तरात्मा का स्वच्छु स्वरूप होगा | अच्छा कलाकार अपने विशेष गुण से उसके सच्चे प्रकाशन को चित्रित करेगा |? गान्धी जी बोले--“परन्तु तुम यहीं पर सारे प्रश्नों को लाना चाहते हो । तुमको मानना पड़ेगा कि केवल बाह्यरूप ही किसी चीज को सोंदर्यमय नहीं कर सकता | एक सच्चे कलाकार के लिए वही आकृति सौंदर्यमय है जो बाह्यरूप से बहुत दूर अ्न्तरात्मा के सत्य के साथ से चमकती हो | यही ठीक है जैसा कि मेंने कहा है कि कोई भी सोंदय सत्य से अलग नहीं । दूसरी बात यह किं सत्यता श्रपने को श्रनेक अकृतियों मं प्रकट कर॒ सकती है जिसमें बाह्य सोंदर्य बिल्कुल नहों हो सकता। यह कहा जाता है कि सुकरात अपने समय का महान :.सच्चा मनुष्य था | परन्तु फिर भी उसकी श्राङति के सम्बन्ध में कहा जाताहै किं यूनान मे एेसी श्रच्छी श्राकृति किसी की न थी । मेरे विचार से वह बहुत ही सुन्द्र था क्योकि उसका सारा जीवन सत्य के पीछे लड़ते बीता । ्रोर तुम्हें स्मरण रखना चाहिये कि बाह्य-




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