जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अध्ययन | Jyodaya Mahakaviya Ka Shalivaijnanik Adhyayn

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Jyodaya Mahakaviya Ka Shalivaijnanik Adhyayn by आराधना जैन - Aaaradhana Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11. 12. 13. 14. 15. 16. हे । इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र पर विद्यालय को स्थापित करने क भो योजना ह । साथ हौ एक विशाल ग्रन्थालय भो स्थापित क्रिया जायेगा! भाग्यशाला ( ओषधालय“चिकित्सालय ) - जोव का आधार शरीर ठ ओर शरीर बाहरी वातावरणों से प्रभावित होकर जीव को अपने अनुक़ल क्रिया करने में बाधा उत्पन्न करता है । तब शरीर में आईं हुईं विक्रतियों को दूर करने के लिये ओषधि की आवश्यकता होती है । अत: इस ओषधायल “चिकित्सालय से असहाय गरीबों के लिये नि:शुल्क चिक्रित्पा करगने के विकल्प से स्थापना की जावेगी । धर्मशाला - क्षेत्र की विशालता को देखने हुये ऐसा लगता द्र कि भविष्य में यह एक लघु सम्मेद शिखर का रूप ग्रहण कर लेगा । जिस प्रकार दिगम्बर जन सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजों, महावीर जी अतिशय क्षेत्र आदि में निरन्तर यात्री आकर दर्शन प्रजनन आदि का लाभ लेते हैं उसी प्रकार इस क्षेत्र में भी तीर्थ यात्री बहु संख्या में आकर णन पजन का लाभ लेबेंगे | अत: उनकी सुविधा के लिये 300 कमं की धर्मशाला आधुनिक सुविधाओं सहित बनाने का निर्णय लिया गया 6 । उदासीन आश्रम - अपनी गृहस्थी से विर्क्त होकर लोग टस क्षेत्र पर आकर अपने जीवन को धर्म साधना में लगा सकें । अत: उदासीन आश्रम के निर्माण करने का निर्णय लिया गया है । बाउण्ड़ी टीवाल - सम्पूर्ण क्षत्र को सुर्यक्ष। करने के लिए 6 फुट ऊंचा बाउण्ड्री दीवाल की सर्वप्रथम आवश्यकता थी । प्रज्य मुनि श्री के प्रवचनों से प्रभावित होकर अजमेर जिले को दिगम्बर जन महिलाओं ने इस बाउण्ड्री को बनाने का आर्शीवाद प्राप्त किया । पहाडी के लिए सीढ़ी निर्माण - उबड़-खाबड़ उतड़ पहाड़ी पर जाने के लिए सीढ़ियों को आवश्यकता थी | अजमेर जिले के समस्त दिगम्बर जन युवा वर्ग ने इस सीढ़ियों को बनाने का प्रज्य मुनि श्री से आशीवाद प्राप्त किया । अनुष्ठान विधान - क्षेत्र शुद्धि हेतु 28.6.95 से 30.6.95 तक समवणरण महामंडल विधान का आयोजन प्रज्य मुनि श्री सुधासागरजी महाराज समंघ मानिध्य में किया गया । तद्नन्तर मुनि श्री के ही समंघ सानिध्य में 1.12.95 से 10.12.95 तक सर्वताभद्र महामंडल विधान अद्ध-सहमस्र




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