श्रावक व्रत ग्रहण | Shravak Vrt Grahan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ड )
नवनवति सम्वत् रचित्त चिर नवीन नीतिवाक्च को हृद्य मेँ धार श्रावक
ब्रत यहण करते हुए पंचम गुग स्थान तक पहुँच कर आगे ऊद्धें गमन
फा मार्ग सहज-सरल्ष बनावेंगे ।
वत्तेमान संसार एक भयानक परीत्ञा-समय के भीतर से गुजर
रहा है और नवीन योजना व लवीन परिकल्पना के लिये आतुर है।
यह चतुरता तो प्षणिक विषय मुख के लिये है । पर सममदार श्रावक
स्वयं व्रत ग्रहण कर दावे के साथ कद सकेगा कि तथाकथित सभ्य
संसार की नवीन निर्माण परिकल्पना जब तक इर्षा, देप, सूया,
मत्सर, इन्द्र और पौद्गलिक भ्रतिस्पर्धारपी कल्नह-बीजों को समूल
उन््मूलित करने में प्रयोजित नहीं होगी, जब तक हिंसा, भूठ, चौरय्य,
व्यभिचार और परिग्रहासक्ति घटा न सकेगी तब तक घर-घर का
क्लेश, समाज-समाज का संघषे, राष्ट्ररराष्ट्र का विरोध, जाति-जाति
का वैमनस्य, वर्ण-चर्ण का कल्नह कद्ापि दूर न द्ोगा। यदि प्रत-
धारी श्रावको द्वारा आत्तं संसार `को उच्चबर से यह बताने का
प्रयास रहे कि श्रावक त्रत, व्यक्ति व समष्टिः सवकं लिये सुखद
है, मोक्षद् है, शान्तिदाता है और इन्हें अपनाने के लिये सबको
चेष्ठित होना चाहिए तो विश्व में एक नवीन-युग, नवीन रचना,
नवीन आशा की ज्योति प्रसरित हो । समय अनुकूल है, जरूरत है
सं सच्चा श्रावक बनने की और सनुष्यमात्र को श्रावक धर्म
सममामे और धराने की । इससे बदृकर और कोई मद्दान कत्तेज्य
नहीं है । ।
` जेन धमं का विशेषत ही यद है कि शद दो या युवा, बालक दो
या शिशु, नर हो या नारी, सब फोर स्व-स्व शक्ति प्रमाण त्रत प्रहण
कर सकते हैं। साधुओं को पंच महात्रव तीन करण कीन योग
से प्रह करके आजीवन पालन करना पड़ता है। परन्तु विषयी
गृहस्थी, पोषि श्रणुत्रत, तीन गुण লব व चार शकता त्रत ये श्रावक कै
User Reviews
No Reviews | Add Yours...