नंदिनी | Nandini

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Nandini by शंभू प्रसाद बहुगुणा - Shambhu Prasad Bahuguna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“काफल पाक्कू! कवि श्री चन्द्रबेँवर बर्तवलल कब हिन्दी-संसार में आए, ओर कब चले गए. इस का किसी को पता न लगा पर उनके रूप में हिन्दी-संसार ने अपना सब्रसे यड़ा गीति-काव्य रचयिता पाया और-खो-दिया । इस प्रकार की घारणा उनकी कविताओं को देखने से मन में बनती है। चन्द्रकुबर के काव्य को भूमिका “लेखक के निर्बल शब्दों में मेरूदंड की श्रावश्यकता नहीं, वह स्वयं अपने तेज से तेजस्वी है । हिमालय में निश्चित समय पर गाने वाले काफल पाक्कू पत्ती के गान की तरह चन्द्रकुंचर के सुरीले मुक्तक मन ओर आत्मा को काव्य-सौन्दर्य के एक नये लोक में उठा देते हैँ और वह आनंद अंत में इस करुणा और कसक के साथ समाप्त हो जाता है कि इस प्रकार के सोन्दयं का गान 'फरने वाला कवि इतनी जल्दी हम से विलग हो गया। उसकी वाणी के परिपाक से इसारी भाषा और भी धन्य होती पर ऐसा न हो सक्रा। जो कुछ भी अट्टाईंस वर्ष की आयु में उनसे हमें मिल सका, वह ही अदभुत है। उनकी लिखी हुईं कविताओं की संख्या लगभग सात सौं तक है और शुद्ध मुक्तक के आनंद की दृष्टि से क्रितनी ही इतनी सुन्दर हें कि वे निखिल दिन्दी- संसार की संपत्ति कही जा सकती हैं । कलात्मक सौन्दर्य और आनन्द की करसीटी पर पूरा उतरने वाले मुक्तक की रचना बहुत हा कठिन है। प्रबंध काव्य पृथ्वी पर पैर रख कर चलता दे, दिन्दु




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