श्रीभगवतीसूत्रम् | Shri Bhagwati Sutram Part-iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[৩৪২]... ` 'कॉक्षामोइनीय .
भगवांन--हाँ ।
गौतम--चद भी सवं से सवरत हैं या दूसरी तरह से ?
भगवान्-चह भो सवे से सवंत दै ।
जैसे नैरयिक के लिए प्रंश्नोत्तर हैं वैसे ही चौबोसों दंडकों
के लिए प्रश्नोत्तर समझने चाहिए ।
` कमे, क्रिया से निष्पन्न होता दै शरोर क्रिया तीनों कार्ला से
संबंध रखती है । अतीत काल में कंमे-निष्पादन की क्रिया की
थी, वत्तेमान में की जां रही है--ओर भविष्य में भ्री' की
जायगी । इस त्रिकाल संबंधी क्रिया से ऋम लगते हैं। क्रिया
पटले होती दे; कम वाद् मै लगते द । कभ वगेणा के पुद्गलों
कां जव श्रात्मा के साथ संबंध हो जाता है तभी डन पुद्गलों
की क्म लंज्ञा होती है1 यद संज्ञा तवतक बनी रहती-है. जब
तककिं बे श्राता से ड न्दी: जते । यद कम॑, क्ियासेदी
होते द, प्रतः करिया के दर कम संवंधो प्रश्न किया गयां है ।
गौतम सामी पूछते है--भगवन ! जीवों ने का्तामोदनीय
कमं क्रिया है? इसके उत्तर मै भगवान ने फेमाया--हाँ गोतम,
किया । इसके आगे देश से देश किय( यावत् सर्वे से सर्व किया ?
यह प्रश्न-है ओर उ लक्षा. उतर पटले को हौ. तरद सर्वं से सर्व
किया, यद समझता चर्दिए | इसी धक्वार बत्तमाब काल और.
भविष्य ,हाल संबंधी प्रश्वोत्तर भो है | जैजें--परगवनम ! जोच
कांच्षामोहतीय -कप्त:ऋषते हैं ? उठरे- हाँ রন, নদ है।?
न
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