श्रीभगवतीसूत्रम् | Shri Bhagwati Sutram Part-iii

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Shri Bhagwati Sutram Part-iii by सेठ छगनमलजी साहेब मुथा - Seth Chagun Saheb Mutha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[৩৪২]... ` 'कॉक्षामोइनीय . भगवांन--हाँ । गौतम--चद भी सवं से सवरत हैं या दूसरी तरह से ? भगवान्‌-चह भो सवे से सवंत दै । जैसे नैरयिक के लिए प्रंश्नोत्तर हैं वैसे ही चौबोसों दंडकों के लिए प्रश्नोत्तर समझने चाहिए । ` कमे, क्रिया से निष्पन्न होता दै शरोर क्रिया तीनों कार्ला से संबंध रखती है । अतीत काल में कंमे-निष्पादन की क्रिया की थी, वत्तेमान में की जां रही है--ओर भविष्य में भ्री' की जायगी । इस त्रिकाल संबंधी क्रिया से ऋम लगते हैं। क्रिया पटले होती दे; कम वाद्‌ मै लगते द । कभ वगेणा के पुद्गलों कां जव श्रात्मा के साथ संबंध हो जाता है तभी डन पुद्गलों की क्म लंज्ञा होती है1 यद संज्ञा तवतक बनी रहती-है. जब तककिं बे श्राता से ड न्दी: जते । यद कम॑, क्ियासेदी होते द, प्रतः करिया के दर कम संवंधो प्रश्न किया गयां है । गौतम सामी पूछते है--भगवन ! जीवों ने का्तामोदनीय कमं क्रिया है? इसके उत्तर मै भगवान ने फेमाया--हाँ गोतम, किया । इसके आगे देश से देश किय( यावत्‌ सर्वे से सर्व किया ? यह प्रश्न-है ओर उ लक्षा. उतर पटले को हौ. तरद सर्वं से सर्व किया, यद समझता चर्दिए | इसी धक्वार बत्तमाब काल और. भविष्य ,हाल संबंधी प्रश्वोत्तर भो है | जैजें--परगवनम ! जोच कांच्षामोहतीय -कप्त:ऋषते हैं ? उठरे- हाँ রন, নদ है।? न




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