श्रीमान लोंकशह | Shreeman Lonkashah

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Shreeman Lonkashah by मुनि श्री सुन्दर जी - Muni Shree Sundar Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ ) इस भम 4৫ ग्रन्थ 9 पष्प चों शक रिरि ति अने अहिं ।, नामकी एक र हमारे त्मीय बन्धु गे भेजी ई मिली हैजि ले कहें प्ररिद्ध 'विवर्य मुनि महाराज नानच॑ंदजी । यदह पुरुत मुनिश्री वाजी पीर सनिश्री न्यायवि जी महास ले माला षन्द होने के पश्चात्‌ प्रकाशित ई है। इस किताब ` टाई- ভি न्ति पेजपर ति 1 है कि :--- छुप २ 1 है कान्तिनोयुग ( तिकार लं उवलन्त चित्र )। दम दता ই श्रीमान्‌ 'तबालजी की लि हुई “ धर्म का ह” नामकीले माला मेंजो इलि पर थाउन 1 व पुम्तकाकारमें नःमु करवाने की व~ ता प्रतीत ई है थवा स्थानकवासखी ॥ श्री नजीस्वामी जो भो छ दिन ए महपतती का दोरा तोड़ कर जेनमन्दिर मूर्ति को मानने लगे है उन के लिए श्रीमान्‌ न्तबालजी ने «धमं ण लौं शाह” नामकी लेखमाला लि अपने परितप्त खमाज ` आश सन दिया था किन उस ले माला का फ - जल्टा द्वी हुआ और तदलुरुप स्वामी कल्या चन्दजी एवं गुलाब- चन्दजी जैसे प्रतीत विद्वान साधु हाली में महपती का ड़ोरा तोड़ सन्दिर मूर्ति के उपालक बन गए है' । अतएवं हुत ज री है + सर परिताप के लिए भी स्थानकवासी माज रै न न्त्वना वो मिलनी ही. हिये अतः भव




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